इस बार गांव बिगाड़ सकते हैं चुनाव
बेरोजगारी चरम पर, मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या बढ़ी

नई दिल्ली (आर्थिक डेस्क)। एक ओर जहां शहरी क्षेत्रों में सोना, मकान और कारों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है, जो बता रही है शहरी क्षेत्र में अब बाजार में पैसा आने लगा है, तो दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब होती दिख रही है और इसके कारण ग्रामीण क्षेत्र में जहां लोगों के खरीदने की क्षमता कम हुई है तो दूसरी ओर इस बार ट्रेक्टर की बिक्री में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। यानी इस बार के चुनाव ग्रामीण क्षेत्र से बिगड़ सकते हैं। घरेलू सामान बनाने वाली कंपनियों ने भी कहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में साबुन, शैम्पु सहित घरों में लगने वाले सामानों की मांग में भारी कमी आ गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आय लगातार गिर रही है। इसे राजनीतिक चश्मे से देखें तो यह चुनावी मैदान में उतरे दलों के लिए चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि जहां कोविड़ के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में ट्रेक्टरों की खरीदी जमकर हुई थी तो वहीं दो पहिया वाहन भी खूब बिके थे, परंतु कोविड़ के बाद वाली स्थितियों में इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रेक्टरों की बिक्री घटकर अक्टूबर माह में 1 लाख 17 हजार पर आ गई है, तो दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में महंगी कारें खूब तेजी से बिक रही हैं, जो बता रही हैं कि शहरों में जहां आय के साधन तेजी से बढे हैं तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आय तेजी से घट रही है।
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अभी 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव पर इसका असर देखने को मिलेगा, क्योंकि यह सभी राज्य ग्रामीण बहुल इलाके वाले माने जाते हैं। घरेलू सामान यानी साबुन, तेल, पेस्ट सहित खाद्यान के पैकेट बेचने वाली एफएमसीजी कंपनियों ने अपने आंकड़े जारी करते हुए बताया है कि ग्रामीण क्षेत्र में मांग में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
कई घरों में सामानों की मांग 20 प्रतिशत तक घट गई है, जो बता रही है कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था लगातार नीचे जा रही है और इसका असर आने वाले चुनाव पर देखने को मिलेगा। वहीं अक्टूबर में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या में ग्रामीण क्षेत्र में तेजी से बढ़ी है। दूसरी और सरकार ने इसका बजट कम कर दिया है।