8 लाख करोड़ के बैंक ऋण ढाई लाख करोड़ में निपटे

धूमधाम के साथ शुरू बड़ा सुधार कार्यक्रम लड़खड़ाकर बैठ गया

नई दिल्ली (ब्यूरो)। केन्द्र सरकार ने डूब रहे बैंक कर्ज और उद्योगों को लेकर एक नया कानून बनाकर इनके लिए बड़े पैमाने पर डूब रहे उद्योगों का उद्धार करने का ऐलान किया था। इसके लिए दिवालिया या शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) को लागू किया था। इसमें 457 मामलों को निपटाने का लक्ष्य रखकर 7 लाख 54 हजार करोड़ वसूल होना थे, जो ढाई लाख करोड़ तक ही सीमित रह गए। 270 दिनों में दिवालिया प्रक्रिया पूरी करने को लेकर बने कानून की खामियों के कारण तीन साल से ज्यादा समय से उद्योग दिवालिया होने के लिए झूल रहे हैं।


भारत सरकार ने बीमार और कर्जदार कंपनियों से निजात पाने को लेकर आईपीसी लागू किया था, जिसके अंतर्गत संदेश था बदनियत या असमर्थ उद्योगपति हट जाएं। उद्योग नए लोगों को चलाने का अवसर मिले। इसके लिए कई संशोधन के साथ आईबीसी में पहले दौर में ही 457 मामलों के निपटारे का लक्ष्य रखा गया था, परंतु यह लक्ष्य बहुत पहले ही लड़खड़ा गया। इससे केवल अभी तक ढाई लाख करोड़ ही सरकार को प्राप्त हो पाए।

सबसे ज्यादा खराब हालत अक्टूबर से दिसंबर के बीच रही। केवल 13.41 प्रतिशत ही मामले निपट पाए। कुल 32,860,90 दावे पेश हुए, इसमें से 4,406,76 मामले ही निपटान की दहलीज तक पहुंच पाए। इस मामले में उद्योगपतियों का कहना है कि दिवालिया की प्रक्रिया के लिए इस कानून में 270 दिन में पूरा होना चाहिए, परंतु एनसीएलटी में जहां सुपर टेक का मामला दिसंबर 2019 से जेपी ग्रुप का मामला 2018 से और जेपी इन्फ्रा का मामला पांच साल से चल रहा है। इस कानून को सरकार ने आर्थिक सुधार का युग प्रवृतक बताया था। इस मामले में संसदीय समिति भी प्रश्नचिन्ह लगा चुकी है। 50 प्रतिशत निपटाए मामलों में उद्योग ही बंद हो गए, जबकि 90 प्रतिशत राशि बैंकों की वापस नहीं लौट पाई। इधर अभी तक बैड बैंक जो डूब रहे बैंक ऋणों को लेकर बनाया गया था, इसमें 50 हजार करोड़ के प्रकरण लिए जाने थे परंतु इसमें भी अभी तक नियुक्तियां ही नहीं हो पाई हैं।

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