देश में हर साल इलाज में 4 करोड़ लोग हो रहे हैं गरीब
800 जीवन रक्षक दवाइयों की कीमतों में फिर वृद्धि 1 अप्रैल से
नई दिल्ली (ब्यूरो)। 1 अप्रैल से जहां 800 से अधिक जीवन रक्षक दवाइयों की कीमतों में 10 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हो रहा है वहीं वे दवाइयां जिन पर सरकार का नियंत्रण नहीं है उनकी कीमतों में भी 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होने जा रही है। सरकार टैक्स में किसी भी प्रकार की छूट देने को तैयार नहीं है। तो दूसरी ओर स्वास्थ्य की सेवाएं कैसे आम आदमी को गरीब बना रही है इसको लेकर इकोनामिक सर्वे में जो आंकड़े उजागर हुए हैं वे बता रहे हैं कि हर साल 4 करोड़ से अधिक लोग दवाइयों के खर्च से गरीब हो रहे हैं और इनमें गरीबी रेखा के करीब के लोग भी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। इसको लेकर फायनेंशियल सर्विसेस ने भी एक सर्वे में पाया है कि प्रधानमंत्री जन औषधि अभियान का भी कोई प्रभाव नहीं है। इसका बजट भी मात्र 2600 करोड़ ही है।
देश में दवाइयों के खर्चे हर साल पांच करोड़ लोगों को गरीब बना रही है। दूसरी ओर एक बार फिर 800 से ज्यादा जीवन रक्षक दवाइयों की कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार ने फार्मा कंपनियों को अनुमति दे दी है। इसके पूर्व जुलाई 2021 में भी कोरोना कॉल के दौरान सरकार ने 50 प्रतिशत तक कीमतें बढ़ाने के लिए अनुमति दी थी। दूसरी ओर जीवन रक्षक दवाइयां फुटकर दुकानों पर पहले से ही महंगी बिक रही थीं। लगातार बढ़ोतरी के बाद 10 प्रतिशत कीमतें और बढ़ना हर परिवार को असर करेगा, क्योंकि इसमें सर दर्द से लेकर बुखार सहित वे दवाइयां हैं जिनकी जरूरत हर दिन पड़ती है। यानी अब जो दवाइयां 20 रुपए के लगभग मिल जाती थी, अब पूरे कोर्स की दवा लेना होगी और इसकी कीमत 60 रुपए के लगभग पहुंच जाएगी। सर्वे में यह भी सामने आया है कि देश की 76 प्रतिशत शहरी और 82 प्रतिशत गांव की आबादी किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी हुई नहीं है और इनका सबसे बड़ा खर्च ओपीडी का है जो क्षमता से ज्यादा है। इकोनामिकल सर्वे भी कहता है कि देश की आबादी का 70 प्रतिशत इलाज का खर्च उठाने के लिए सक्षम नहीं है। दूसरी ओर फार्मा कंपनियों का कहना है कि पैकिंग मटेरियल की कास्ट 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है वहीं कच्चे माल में भी कीमतों में इजाफा हुआ है। ऐसे में दवाइयों की लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा था। पैरासिटामाल का एपीओ जो 300 रुपए किलो था वो बढ़कर 1000 रुपए किलो हो गया है। यही स्थिति अन्य कच्चे माल की भी है।
जन औषधि केन्द्र योजना विफल
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना केन्द्र देशभर में स्थापित किए गए परंतु इन दवा केन्द्रों पर जीवन रक्षक दवाइयां की कमी के कारण यह सफल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर डॉक्टर भी जेनरिक दवाइयां नहीं लिख रहे हैं।
कोरोना काल के बाद…
देश में कोरोना की दो लहरों के बाद जहां मरीजों की बीमारी का प्रतिशत 6 से बढ़कर 10 हो गया है वहीं दूसरी ओर इलाज भी सभी महंगे हो गए हैं। डॉक्टरों की फीस में भी इजाफा हुआ है तो लेब टेस्ट भी महंगे हो गए हैं।