पारंपरिक खेती को छोड़ नए प्रयोग कर कमा रहे लाखों
नवाचार की राह पर मालवा के किसान
इंदौर (धर्मेन्द्र सिंह चौहान)।
पिछले कुछ सालों से मालवा का किसान परंपरागत खेती को छोड़ कर नवाचार खेती की ओर अग्रसर हो रहा है। यही कारण है कि मालवा क्षेत्र में कही सेब की खेती हो रही है तो कहीं स्ट्रॉबेरी की तो कही अंजीर जैसी फसल बडी तादाद में कर रहे है वही कुछ किसान गेंहू, चना, मक्का, बाजरा को छोड़ अश्वगंधा, अकरखर सफेद मूसली जैसी ओषधीय की खेती कर लाखो रुपए कमा रहे है।
खेती किसानी का व्यवसाय मानसून का जुआं कहलाता है, बुजुर्ग किसानों का कहना है कि भारत में हर पांच साल में दो साल अतिवृष्टि, दो साल अल्पवृष्टि और एक साल ही सामान्य बारिश होती है। ऐसे में किसानों को हर साल कड़ी मेहनत के बाद भी खास आमदनी नही होती है। पहले के किसान कर्ज में पैदा होकर कर्ज में ही जीवन यापन करने को मजबूर होकर नोकरी की तलाश में शहर की ओर निकल जाते थे, गांवों में कालोनियां काटने लग गई थी। मगर अब ऐसा नही होता। किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए नवाचार खेती पर ध्यान देकर लाखो रुपए कमा रहे है। देपालपुर तहसील के शाहपुरा में रहने वाले किसान लाखन सिंह गेहलोत ने मालवा क्षेत्र में सबसे पहले नवाचार करते हुए काले गेहूं की खेती की। गहलोत इसमे इतना सफल हुए की इन्होंने इसके बाद परम्परागत खेती करना ही छोड़ दिया। गहलोत ने काले चने के साथ ही कई प्रकार की नई फसलों की खेती कर लाखो रुपए तो कमाए साथ ही कृषि के क्षेत्र में नवाचार करने पर सरकार से उन्नत किसान का पुरुस्कार जितने के बाद भी यह नवाचार में लगे रहते है। इनसे प्रेरणा लेकर जिले के कई किसानों ने काले गेहूं बो कर कर नवाचार की खेती से कर लाखो की कमाई का नया रास्ता अपना लिया। इसी तरह खुड़ैल में रहने वाले संतोष सोमतिया भी परंपरा से हट कर नवाचार की खेती से साल में 20 से 35 लाख की कमाई कर रहे है। इन्होंने शुरूआत जैविक खेती से करते हुए अश्वगंधा, अकरकरा जैसी ओषधियों के साथ ही हिमाचल के सेब भी अपने खेत मे लगाए। संतोष सोमतिया का कहना है कि में अपने हिसाब से खेती करता हु। नए नए प्रयोग करने से जमीन हर बार नई हो जाती है।
इसी तरह जस्सा कराड़िया के सतीश जोशी कहते है कि यह सही है कि बीते कुछ सालों में खेती में आमूलचूल परिवर्तन आया है। तकनीक और तौर-तरीकों में बदलाव हुआ है। सदियों से जो गौ आधारित खेती होती रही वह पूरी तरह बदल कर आधुनिकता ओर नवाचार का जोर इन दिनों खूब पसंद किया जा रहा है। हमारे यहां भी अब खेती प्रयोग शाला बन गई है। रामअवतार राजावत का कहना है कि कृषि के नए नए आधुनिक उपकरण की खोज के साथ ही अब किसानों ने भी कृषि के क्षेत्र में प्रयोग करते हुवे,खेती को नवाचार की प्रयोगशाला बना लिया है। आज के किसानों के पास खोने को कुछ नही है। बच्चे पढ़ लिख कर अपना जीवन अलग जी रहे है। हमे किसी प्रकार की कमी होती है तो बच्चे मदद करते है इसलिए नए प्रयोग करने की हिम्मत करते है अनुभव के आधार पर सफलता भी मिलती है। बिसनावदिया के किसान सुरेश यादव बताते है कि बचपन से देखते आ रहे है कि खेती मानसून का जुआं है। यहां हर पांच साल में कभी अतिवृष्टि, तो कभी अल्पवृष्टि कभी सभी ही सामान्य बारिश हुआ करती है। ऐसे में हर साल अच्छी पैदावार नही होती है। किसान कर्ज में जीता है, ओर कर्ज में मर जाता है। मगर अब हालात बिल्कुल अलग है। नवाचार ने किसानों को अलग तरह का सम्बल दिया है। पहले दिखता था कि खेती जोखिम का काम है, इसमें हर दिन चुनौती ही चुनौती है। मगर अब ऐसे ऐसी खेती होने लग गई कि किसानों को न तो ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और न ही ज्यादा देख भाल। ओषधीय खेती में बस एक बार बीज डाल दो एक दो बार पानी दे दो। इन्हें न तो जानवरो का डर और न ही इंसानों का। इसलिए नवाचार की खेती में पैसे के साथ साथ सुकून भी बहुत है।