रायशुमारी दरकिनार से लेकर नियुक्तियों में विवादास्पद बने भगत

शिवप्रकाश के दौरों ने तय कर दी थी रवानगी, नड्डा के दौरे में मुहर लग गई

इंदौर (वीरेन्द्र वर्मा)। मध्यप्रदेश के भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत के रवाना किए जाने को लेकर पटकथा 4 माह पहले से ही लिखना शुरू हो गई थी जब मध्यप्रदेश में शिवप्रकाश ने जिले-जिले में घुमकर कार्यकर्ताओं के बीच बातचीत में इस बात को पहचान लिया कि संगठन महामंत्री की कार्यप्रणाली को लेकर कार्यकर्ताओं में बेहद ज्यादा असंतोष खदबदा रहा है। 12 जिला अध्यक्षों की सीधी नियुक्ति उन्होंने संगठन को दरकिनार करते हुए रायशुमारी को भी कचरे की टोकनी में फेंक दिया था। इसमें इंदौर के अध्यक्ष का मामला भी शामिल है।
दूसरी ओर अपने चहेते संगठन मंत्रियों को भाजपा में पहली बार लाभ के पदों पर बैठाने के मामले में भी वे अपनी पहचान बना चुके थे। इसमें कुछ संगठन मंत्री ऐसे थे जिनका भाजपा में किसी भी आंदोलन में कोई भूमिका नहीं थी जबकि भाजपा के ही कई कार्यकर्ता आंदोलनों को लेकर जेल यात्रा तक कर चुके हैं। ऐसे सभी नेताओं को उम्रदराज बताकर पद नहीं दिए गए। सुहास भगत की रवानगी उन शीर्षस्थ पदों पर विराजित नेताओं के लिए चेतावनी है कि वे रात को सोने के बाद सुबह अपने पदों से मुक्त हो सकते हैं। यह भी सबसे बड़ी बात रही कि 2018 में सुहास भगत की रणनीति के कारण ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित हो गई थी और वे जोर-जुगाड़ में ही लगे रहे।
आखिरकार प्रदेश भाजपा संगठन महामंत्री सुहास भगत की छुट्टी हो ही गई। इसके पीछे बड़ा कारण यह रहा कि भगत सत्ता और संगठन में सामंजस्य नहीं बैठा पाएं। सरकार में जो नियुक्तियां हुई वो भी विवादित रही। संगठन में भी जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में वरिष्ठों की अनदेखी करना भगत के खिलाफ आंतरिक विरोध का कारण बना। भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत का हटना लाभ के पदों पर संघ के पदाधिकारियों की नियुक्ति के साथ तय हो गया था। इसमें भी सबसे विवादित इंदौर विकास प्राधिकरण में बाहरी जयपालसिंह चावड़ा की नियुक्ति मानी जा रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं में सत्ता और संगठन में पदों के बंटवारे को लेकर भारी विद्रोह हो गया। कार्यकर्ताओं और नेताओं ने राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर पर भगत की शिकायत करना शुरू कर दिया। पार्टी में भगत की कार्यशैली सिर्फ सवाल ही नहीं उठाएं, बल्कि खुलकर बाहरी लोगों की नियुक्तियों और संगठन में पद देने का विरोध किया। खासकर इंदौर, ग्वालियर और भोपाल जिला भाजपा में सत्ता और संगठन में बिखराव की स्थिति उत्पन्न हो गई। कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष पैदा हो गया।
भगत के पूर्व कृष्णमुरारी मोघे, अरविंद मेनन, कप्तानसिंह सोलंकी जैसे संघ के लोग संगठन महामंत्री बने है, जिन्होंने कार्यकर्ताओं और नेताओं की अनदेखी नहीं की। लेकिन सुहास भगत यह सामंजस्य कायम नहीं कर सके। भगत की नंदकुमारसिंह चौहान और जबलपुर के सांसद राकेशसिंह के साथ भी नहीं बनी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बातचीत शुरू करवाना पड़ी। भगत का संगठन के अध्यक्ष से भी तालमेल ठीक नहीं रहा। परिणामस्वरूप भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को इंदौर आना पड़ा।
सुहास भगत ने भाजपा की परंपरा तोड़ी और सत्ता में संघ के लोगों की भागीदार बनाया। सत्ता के भागीदार भी ऐसे बनाएं जो उस जिले के नहीं थे। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता इसके पहले इतने मुखर कभी नही रहे, जितने सुहास भगत के कार्यकाल में हो गए। इंदौर आईडीए और नगर अध्यक्ष की नियुक्ति से पूरी भाजपा हैरान हो गई। प्रदेश मीडिया प्रभारी उमेश शर्मा ने तो नियुक्तियों लेकर सवाल उठा दिए। शर्मा के सवाल उठाते ही इंदौर से भोपाल और दिल्ली तक बवाल मच गया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे को भी यही बताया कि वे स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्पन्न असंतोष की जानकारी लेंगे और चर्चा करेंगे। हुआ भी यही कि नड्डा ने इंदौर में विभिन्न स्तर पर अलग अलग नेताओं और कार्यकर्ताओं से चर्चा कर उनकी बात सुनी। नड्डा ने सारी जानकारी संघ वरिष्ठ पदाधिकारियों तक पहुंचा दी, जिसके बाद प्रतिनिधि सभा में भगत को वापस बुलाने पर फैसला हो गया।

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