नगर निगम ने संरक्षण की नीति बनाए बगैर कर दिए करोड़ों खर्च

पीएचई की जांच में कुएं-बावड़ी पानी के सभी नमूने फेल फिर भी

– शार्दुल राठौर
इंदौर। पिछले तीन वर्षो में नगर निगम शहर के कुएं बावड़ी सहेजने में करोड़ो रुपए खर्च कर चुका है, लेकिन निगम के अधिकारी आज भी यह बताने की स्थिति में नहीं है, की गर्मी के दिनों में शहर के कितने कुएं बावड़ी प्यास बुझाने के लिए तैयार है। केंद्र सरकार से कुएं बावड़ी के संरक्षण के लिए मिलने वाली राशि का नगर निगम द्वारा हर साल पानी में बहा दी जाती है।
निगम अफसरों ने केंद्र सरकार से मिली पांच करोड़ की राशि में से बीते तीन वर्षो में तीन करोड़ खर्च कर दिए। इस महा घोटाले में आश्चर्य जनक बात यह है, की कुंए, बावड़ी के संरक्षण की नीति बनाए बगैर सिर्फ सफाई में केंद्र से मिली राशि बर्बाद कर रहा है, जबकि लोक स्वास्थय यांत्रिकी विभाग भी अपनी रिपोर्ट में शहर में मौजूद कुएं, बावड़ी के पानी के नमूने की जांच के बाद इसे पीने योग्य नहीं होने बात कह चुका है। इतनी राशि में शहर में नए तालाब तैयार हो जाते जिसे बारिश का पानी सहेजने के साथ जल स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता था।
शहर में हर वर्ष कुओं-बावड़ी की साफ-सफाई पर निगम करोड़ों रुपए खर्च करता है, लेकिन फिर भी कुओं-बावड़ी में पानी की जगह कचरा भरा रहता है। इसका प्रमुख कारण है, की सफाई के बाद निगम के जिम्मेदार अफसर ध्यान नहीं देते और न ही सफाई होने के बाद उनका संरक्षण करते है। यही कारण है की शहर के कई प्राचीन कुएं-बावड़ी का अस्तित्व खत्म हो गया है,या जो मौजूद है, उनकी हालत बद से बदतर है। यही नहीं शहर में ज्यादातर स्थानों पर भू जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। कई स्थानों पर 250 फिट गहराई से भी बोरिंग पानी नहीं दे पा रहे है, ऐसे में कुएं, बावड़ी में पानी की आव कैसे बनेगी। पी एच ई की जांच में कुएं, बावड़ी के पानी मे एसिड युक्त पानी के नमूने मिलने की बात भी सामने आई है, जो ज्यादतत गंदे पानी के नाले में पाया जाता है।
निगम के अफसर और पूर्व पार्षद एक दशक से कुएं-बावडिय़ों को बचाने की बात कर रहे हैं। 2008 में जल संकट के समय परिषद बैठक में सभी कुएं-बावडिय़ों के बंद कराने पर रोक लगा दी थी। इससे पहले कुछ सालों में ही 9 कुएं बंद हो चुके हैं। इनमें जोन 13 में 5 और जोन 18 में 4 कुएं शामिल हैं। स्वच्छता सर्वेक्षण-2022 के लिए
निगम के 19 जोन अंतर्गत आने वाले कुएं-बावडिय़ों की सफाई, संधारण कार्य और ग्रीन नेट जाली लगाने को लेकर टेंडर जारी किए गए हैं। शॉर्ट टेंडर में यह काम 7 दिन में पूरा किया जाना है, जिसके लिए निगम 1 करोड़ का भुगतान करने जा रहा है।
शहर में हैं 630 कुएं-बावड़ी
निगम रिकॉर्ड अनुसार शहर में 630 कुएं-बावड़ी हैं। यह आंकड़ा एक प्राइवेट कंपनी से सर्वे कराने के बाद सामने आया था। शहर के 85 वार्डों में सर्वे कर 630 कुएं ढूंढे गए। इनमें 3 मीटर डाया के 330 बड़े कुएं हैं। सफाई के लिए पैसा केंद्र सरकार से मिलता है। फिलहाल निगम के अफसर 360 कुएं बावड़ी में से 200 की सफाई की बात कह रहे है। शहर के परंपरागत जलस्रोतों की सफाई के लिए केंद्र सरकार से नगर निगम को पांच करोड़ रुपए की मदद मिली है, जिस पर कुएं बावड़ी के संरक्षण की नीति बनाए बगैर राशि खर्च की जा रही है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की साल 2013 की ही रिपोर्ट में यह बताया गया था कि इंदौर जिले के सभी ब्लॉकों में लोग भूजल का दोहन प्राकृतिक तरीके से पानी रिचार्ज होने से अधिक कर रहे हैं, यानी जमीन में जितना पानी जा रहा है, उससे कहीं अधिक निकाला जा रहा है। इसे जीडब्ल्यूडी यानी ग्राउंड वॉटर डेवलपमेंट कहते हैं। रिपोर्ट में इंदौर, सांवेर और देपालपुर ब्लॉक में स्थिति काफी गंभीर है। यह सभी इलाके ओवर एक्सप्लॉइटेड जोन यानी पानी का अति दोहन करने वाले इलाके बताए गए थे। इंदौर ब्लॉक में प्राकृतिक रिचार्ज के सहारे अगर जमीन में 100 लीटर पानी जाता है, तो यहां के लोग 151.60 लीटर पानी जमीन से वापस खींच लेते हैं। इतना इतना सबकुछ होने के बावजूद भूजल स्तर बढ़ाने के लिए कोई ठोस कदम या बोरिंग पर पाबंदी जैसे कड़े नियम नहीं बनाए जा रहे है, अब तक जो नियम बने भी है उन्हें सख्ती से अमल में लाने के लिए कोई काम नहीं किया गया। 2020 में शहर के कुओं-बावड़ी की सफाई और संधारण के लिए निगम जल यंत्रालय व ड्रेनेज विभाग ने टेंडर जारी किए थे। वार्षिक दर निर्धारण के लिए यह टेंडर जारी किए थे, ताकि कुओं-बावड़ी की सफाई के साथ टूट-फूट को सही कराने के लिए बार-बार टेंडर नहीं करना पड़े। इतना होने के बावजूद निगम एक भी कुएं के पानी का उपयोग गर्मी में प्यास बुझाने के लिए नहीं कर पा रहा है। फिलहाल निगम वॉटर प्लस सर्वेक्षण में दूसरी बार अव्वल आने की तैयारी में जुटा है। यह तभी संभव है, जब नदी-तालाबों के साथ कुएं-बावड़ी की सफाई और अन्य काम समय रहते व सर्वेक्षण शुरू होने से पहले हो जाए। इसके लिए एन मौके पर टेंडर जारी कर दिखावे की लीपापोती की जा रही है।

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