पांच राज्यों के नतीजे तय करेंगे प्रदेश की सियासत

भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजरें विधानसभा चुनाव परिणामों पर

इंदौर। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के परिणामों पर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें टिकी हुई है। आगामी १० मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में व्यापक स्तर पर स्तर पर बदलाव नजर आएगा, वहीं स्थानीय स्तर पर भी राजनीतिक समीकरण भी बदल जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, गोवा एवं मणिपुर में हो रहे विधानसभा चुनाव को २०२४ में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इन चुनावों में जहां भाजपा की साख दांव पर लगी हुई है, वहीं कांग्रेस के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्र है। कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि वह उत्तरप्रदेश, पंजाब एवं गोवा में सरकार बनाने जा रही है, वहीं भाजपा को उम्मीद है कि वह उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा में पुराना प्रदर्शन दोहराएगी। साथ ही, पंजाब एवं मणिपुर में दोनों ही दल बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगाए हुए हैं।
अपेक्षित नतीजे नहीं आने पर मचेगा घमासान
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव का सेमिफाइनल माना जा रहा है। यदि इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले तो इन पार्टियों में घमासान अवश्यंभावी है। असंतुष्ट जहां मुखर हो जाएंगे वहीं नेतृत्वकर्ताओं के लिए मुश्किल बढ़ जाएगी। इसके साथ ही स्थानीय राजनीति में भी भूचाल आने की आशंका है। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दलों के लिए विधानसभा चुनाव में विजय प्रतिष्ठा का प्रश्र है। यदि किसी भी दल की प्रतिष्ठा को ठेंस पहुंचे तो उसकी भविष्य की रणनीति भी प्रभावित होगी।
दोनों ही दलों के असंतुष्ट हैं मौके कीताक में
देखा जाए तो कांग्रेस में पहले ही जी-२३ नेताओं ने पार्टी एवं संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। यदि कांग्रेस उत्तरप्रदेश, पंजाब एवं गोवा में बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता पर काबिज होने में सफल हो जाती है तो असंतुष्ट नेताओं के पर कट जाएंगे। इसके बाद कांग्रेस एक बार फिर मजबूत बनकर देश के राष्ट्रीय परिदृश्य पर छा जाएगी। इसके साथ ही असंतुष्ट पार्टी नेताओं की भी नकेल कस दी जाएगी। दूसरी ओर, यदि भाजपा इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने में नाकाम रहती है तो उसके लिए भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। क्योंकि, भाजपा में भी असंतुष्ट नेताओं की कोई कमी नहीं है। जिस तरह से पार्टी और संगठन में पुराने खांटी नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है, उससे उनमें तीव्र असंतोष है। चुनाव परिणाम पक्ष में नहीं आने पर वे मुखर हो जाएंगे। यदि, ऐसा हुआ तो लोकसभा चुनाव के पहले ही भाजपा की चूलें हिलती नजर आएंगी।स्थानीय स्तर पर भी पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव परिणामों का व्यापक असर नजर आयेगा। मध्यप्रदेश में जिस तरह से कई कांग्रेस नेताओं का भाजपा में प्रवेश हुआ और पुराने भाजपाईयों को दरकिनार किया गया उससे भाजपा में व्यापक असंतोष है। यदि परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आये तो पुराने खांटी भाजपाई भी मुखर हो जाएंगे और भाजपा में भी सत्यनारायण सत्तन, भंवरसिंह शेखावत, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता पार्टी संगठन को कटघरे में खड़ा करने में पीछे नहीं हटेंगे। दूसरी ओर कांग्रेस को भी यदि चुनावों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिले तो वहां भी यही स्थिति निर्मित हो सकती है।

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