आयुष्मान भारत के नाम पर चल रही बंदरबांट

निजी अस्पतालों में धांधली, मरीजों की जान से किया जा रहा खिलवाड़

इंदौर (आशीष साकल्ले)।
शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं को किस तरह से पलीता लगाया जाता है, इसका उदाहरण है आयुष्मान भारत। महानगर में इस योजना के नाम पर जमकर बंदरबांट चल रही है और निजी अस्पतालों ने इसे अंधी कमाई का जरिया बना लिया है। बावजूद इसके, जिम्मेदार धृतराष्ट्र बने हुए हैं। हालात कितने संगीन हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर जहां इलाज के नाम पर निजी अस्पताल संचालकों व्दारा सरकार को लाखों-करोड़ों रुपए का चूना लगाया जा रहा है, वहीं योजना के पात्र मरीजों की जान के साथ भी खिलवाड़ भी किया जा रहा है।
यहां यह प्रासंगिक हैं कि केन्द्र सरकार व्दारा आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने, निर्धन एवं मध्यम वर्ग के लोगों को मंहगे इलाज से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से आयुष्मान भारत योजना लागू की है। इस योजना के तहत साल भर में पांच लाख रुपए तक का इलाज शासन व्दारा उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना का लाभ अधिक से अधिक लोग प्राप्त कर सकें, इसलिए कई निजी अस्पतालों को भी इस योजना से जोड़ा गया है। बावजूद इसके, अधिकांश निजी अस्पतालों ने इस योजना को अपनी अंधी कमाई का जरिया बना लिया है और सरकारी धन की बंदरबांट में जुट गए हैं।

इलाज के नाम पर की जा रही है खुलेआम धोखाधड़ी
देखा जाए तो निजी अस्पताल संचालक स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों व दलालों से सांठगांठ कर मरीजों के साथ ही सरकार के साथ भी खुलेआम धोखाधड़ी कर रहे हैं। हालात यह हैं कि मामूली बीमारी और साधारण इलाज के लिए भी निजी अस्पताल प्रबंधन लाखों के बिल बनाकर सरकार से अवैध वसूली कर रहे हैं। बताया जाता है कि अस्पताल प्रबंधन से सांठगांठ के चलते स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्ट अफसर भी इन दिनों कल्पित एवं फर्जी प्रकरणों में इलाज खर्च के नाम पर लाखों रुपए जारी करवाने में अधिक सक्रिय रहते हैं, जबकि कई जरूरतमंद अपने इलाज के लिए यहां-वहां भटकने के लिए मजबूर हैं।
न बिल दे रहे और न इलाज के पर्चे, थमा रहे खाली कार्ड
सूत्रों के अनुसार, आयुष्मान भारत योजना के तहत निजी अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को न तो इलाज के पर्चे मिल रहे हैं और न ही बिल दिए जा रहे हैं। इन अस्पतालों में पूरे साल के लिए योजना की निर्धारित राशि (पांच लाख रुपए) किसी भी मामूली बीमारी के साधारण इलाज में ही लम्बे-चौड़े बिल बनाकर समाप्त कर दी जाती है और मरीज को डिस्चार्ज करते समय थमा दिया जाता है, आयुष्मान योजना का खाली हो चुका कार्ड। यदि वह दोबारा बीमार पड़ता है और इलाज की जरूरत होती है तो उसे न केवल योजना के लाभ से वंचित होना पड़ता है, बल्कि कर्ज लेकर मंहगा इलाज करवाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बावजूद इसके, जिम्मेदार धृतराष्ट्र बने हुए हैं और स्थानीय प्रशासन भी गांधारी की भूमिका का निर्वाह करते प्रतीत हो रहा है। अब यह देखना अवश्य ही दिलचस्प होगा कि आगे-आगे होता है क्या…

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