15 लाख करोड़ के नोट बंद किए थे और 30 लाख करोड़ के नए नोट छाप दिए

न विकास दर बढ़ी न मांग बढ़ी, आरबीआई की ताजा रिपोर्ट में नकदी 52 हफ्ते के उच्चतम स्तर पर

नई दिल्ली (दोपहर आर्थिक डेस्क)। इन दिनों देश के बड़े-बड़े शोरूम से लेकर पान की दुकान तक डिजिटल भुगतान के बोर्ड लगे हुए हैं। इसके बाद भी लोगों का नकदी पर भरोसा अभी भी बरकरार है। जिस नोट बंदी को लेकर यह ऐलान किया गया था कि भारत डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके साथ ही आतंकवाद की कमर भी टूट जाएगी। परंतु इस ऐलान की कमर ही तीन साल में टूट गई। 14 लाख करोड़ के 1000 और 500 के नोट बंद कर यह कदम उठाया गया था परंतु आरबीआई के ताजा आंकड़ों ने बता दिया है कि देश में अभी भी नकद की मांग भरपूर बनी हुई है बल्कि यह बढ़ रही है। इसके चलते 11 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में देश में लगभग 31 लाख करोड़ के नोट छपकर बाजार में पहुंच गए हंै। यह अब तक की सबसे बड़ा मौद्रिक चरण है। इसके बाद भी बाजार में खरीदारी नहीं बढ़ी, साथ ही देश की विकास दर पर भी इसका कोई असर नहीं हो रहा है। देश की मौद्रिक व्यवस्था अब 30 लाख करोड़ से ज्यादा की हो गई है।
8 नवम्बर 2018 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1000 और 500 के नोटों का चलन समाप्त करते हुए कहा था अब यह लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। इसके बाद देशभर में बैंकों के बाहर बड़ी कतारें लग गई। कई लोग नोट बदलाने के लिए लाइनों में ही मर गए। सरकार का मानना था इससे काले धन पर रोक लगेगी। आतंकवाद भी समाप्त होगा। नकली नोट भी चलन से बाहर हो जाएंगे परंतु 15 लाख करोड़ के लगभग नोट चलन में थे। इसमें से बैंकों में 95 प्रतिशत नोट वापस पहुंच गए। बाद में कहा गया कि देश में डिजिटल लेन-देन बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया है। प्रारंभिक 6 माह में डिजिटल लेन-देन भी खूब  चला परंतु धीरे-धीरे यह वापस कम हो गया। इधर सरकार 2000 के नोट कम करती गई। पिछले दो सालों से 2000 के नोटों की छपाई बंद है। वहीं 500, 200, 100 के नोटों की छपाई लगातार जारी रही। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2016-17 में 354.19 लाख 2000 के नोट छापे गए। वहीं वर्ष 2018-19 में 4.66 लाख नोट छापे गए थे। इसके बाद छपाई बंद हो गई। इधर 11 फरवरी को रिवर्ज बैंक के ताजा आंकड़ों में बताया गया कि देश में नकदी का चलन पिछले 52 हफ्ते के उच्चतम शिखर तक पहुंच गया है। देश में 30.5 लाख करोड़ का नकदी बाजार में चलन में है। इसमें बैंकों में भी पैसा जमा है। देश की मौद्रिक व्यवस्था अब 210 लाख करोड़ की होने जा रही है। इसके बाद भी इसका विकास दर पर कोई असर नहीं दिख रहा है। साथ ही इससे यह भी सिद्ध हो रहा है कि नोट बंदी एक बेहद ही गलत कदम रहा।
छोटी बचत और घरों में रोक रहे हैं पैसे
लगातार तीन बार कोरोना महामारी के बाद अस्पतालों में महंगे इलाज, बेरोजगारी और महंगे सामान को लेकर हर परिवार में 6 से 8 महीने घर पर बैठकर भी परिवार चलाने के लिए यह राशि सुरक्षित की है। बचत खातों में 12.9 प्रतिशत की ग्रोथ देखी गई है। यानी हर परिवार पैसे को खर्च करना नहीं चाहता है।
नोटबंदी के पहले 14 लाख करोड़ लोगों के घरों से बाहर निकलकर बैंकों तक पहुंचे थे। एक अनुमान के अनुसार अब 20 लाख करोड़ से ज्यादा लोगों के घरों में वापस पहुंच गए हैं।
कहां जा रहा नकदी?
30 लाख करोड़ के नकदी चलन के बाद भी बाजार में कारोबार को रफ्तार नहीं मिल रही है और न ही मांग बढ़ रही है। न मोटरसाइकिलें बिक रही है और न कारें। बाजार में खरीदी नहीं है। यदि इसमें से 10 लाख करोड़ रुपया भी बाजार में पहुंचे तो हर कारोबारी को बड़ी राशि का कारोबार करने का मौका मिलेगा।
मध्यमवर्गीय ने खरीदारी बंद की
देश की कई कम्पनियों को सबसे बड़े ग्राहक के रूप में मध्यमवर्गीय परिवारों को ही आकर्षित करना होता है। टीवी, फ्रीज, मोटरसाइकिलें, कारें, छोटी कारें इन्हीं परिवारों की मांग होती है। यहां पर अभी 20 प्रतिशत भी मांग नहीं बढ़ी है।

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