9 लाख करोड़ रुपए तो ब्याज ही देना होगा

कर्ज के पहाड़ में दब गई है सरकार.............. बजट की असली रिपोर्ट

नई दिल्ली (दोपहर आर्थिक डेस्क)। केन्द्र सरकार का बजट आने में अब चंद दिन ही बाकी रह गए है। इस बार सरकार भारी कर्ज के पहाड़ से दबने के बीच अपना बजट प्रस्तुत करेंगी। इसमें किसानों के लिए भी सरकार कृषि कर्ज का बजट बढ़ाकर 18 लाख करोड़ रूपए करने जा रही है। पांच राज्यों के चुनाव में किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए नए दांव-पेंच शुरू कर रही है। दूसरी ओर इस साल सरकार को 9 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का ब्याज भी चुकाना है जो कुल राजस्व का 45 प्रतिशत हो गया है। 2012 तक बजट का 36 प्रतिशत ही ब्याज पर खर्च होता था।
केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले बजट के बड़े-बड़े आंकड़ों के बीच बजट का सही चेहरा दिखाई नहीं देता है, जो इस खबर में अब आपको दिखाई देगा। इस साल का बजट 34 लाख करोड़ रूपए का बनाया गया है। परन्तु इसमें से 20 लाख करोड़ रूपए तो सरकार के ब्याज के भुगतान,वेतन, पेंशन, सब्सिड़ी, मनरेगा और किसानों की योजना पर खर्च करना ही होगा। यह सभी खर्च तय बजट के अनुसार ही है। बचे हुए 14 लाख करोड़ में राज्यों की हिस्सेदारी और अन्य योजनाएं चलानी होगी। पिछली साल के बजट में सरकार का कुल राजस्व 19 लाख करोड़ रूपए ही रहा था, जबकि सरकार ने 34 लाख करोड़ रूपए खर्च किए। 15 लाख करोड़ रूपए कर्ज के रूप में सरकार उठा चुकी है। वहीं ब्याज के रूप में 8 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा चुकाएं गए, यानि कुल राजस्व का 45 प्रतिशत तो केवल ब्याज में ही चला गया। अगले साल यह ब्याज 9 लाख करोड़ के पार होगा जो अब तक का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक कर्ज कहलाएंगा। मुलधन की बात तो अभी हो ही नहीं रही है, वर्ना यह 60 प्रतिशत के पार पहुंच जाएगा।

मनरेगा जैसी एक दर्जन योजनाओं का बजट
सरकार द्वारा उठाए गए कर्जों के ब्याज की राशि इतनी है कि मनरेगा जैसी 12 योजनाएं चलाई जा सकती है। इस साल मनरेगा पर 73 हजार करोड़ का बजट रखा गया है।
मार्च से पड़ेगी ब्याज की मार
केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कर्जों के भुगतान को लेकर रिजर्व बैंक मार्च से ब्याज की दरों में अच्छी खासी वृद्धि करने जा रही है। वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार भी नए कर्ज लेने के लिए बाजार में पहुंचेगी। उसे भी मंहगा कर्ज ही उठाना होगा। इसका बोझ आम-आदमी पर ही आएगा।
चुनाव बाद पेट्रोल-डीजल जेब खाली करेंगे
कच्चे तेल के भाव 90 डालर के पार बने रहेंगे। इस हिसाब से पेट्रोल-डीजल कम से कम 10 रूपए तक और मंहगे किए जाएंगे। सरकार अपना खजाना भरने के लिए पिछली बार की तरह ही पेट्रोल-डीजल पर ही आश्रित रहेंगी। अभी केवल चुनाव के कारण सरकार भाव नहीं बढ़ाने के लिए मजबूर है।

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