अब चीन का मांझा बरेली के नाम से बेच रहे

प्रतिबंध के बाद निकल गए कई रास्ते, कोई कार्रवाई नहीं

इंदौर। शहर में चाइनीज मांझा बेचने पर बेन लगा है। मगर शहर की कई दुकानों पर इसका नाम बदल कर चाइना मांझा की जगह बरेली की डोर बात कर बेच जा रहा है। यह 50 रुपए से लेकर 250 रुपए में आसानी से उपलब्ध हो रहा है। बाउजूद इसके इन दुकानदारों पर न तो निगम प्रशासन ध्यान दे रहा है और न ही पुलिस प्रशासन। शहर में चाइनीज मांझे की खरीद फरोख्त पर पाबंदी है मगर कुछ जगहों पर इसे नाम बदल कर खुलेआम बेचा जा रहा है। चाइनीज मांझे की चपेट में आने से गर्दन, नाक और चेहरा कटने की घटना में होगा इजाफा।

छावनी के एक दुकानदार ने बताया कि चाइनीज मांझे के मुकाबले देशी मांझे से कम खतरा होता है। चाइनीज मांझा नायलॉन , प्लास्टिक या दूसरी सिंथेटिक सामग्री से बने होते हैं, जिससे मांझे में काफी मजबूत रहती हैं। जबकि देशी मांझे पर लोहे और शीशे के कण लगाए जाते हैं, जो आसानी से टूट भी जाते हैं। मगर चाइनीज मांझा गर्दन, नाक, कान के साथ ही शरीर का हर वह हिस्सा कट जाता है जो भी इसकी चपेट में आ जाता है।
शहर में चीन के बने मेटेलिक मांझे ने कई जिंदगियां खत्म कर दी हैं लेकिन बैन के बावजूद यह जमकर बिक रहा है। प्रतिबंध के बाद भी पैसों के लालच में कुछ दुकानदार आसानी से खतरनाक चाइनीज मांझे की कालाबाजारी कर रहे हैं। ऐसे मांझे आसानी से छावनी के साथ ही कई प्रमुख बाजारों में आसानी से मिल रहा हैं। चाइना के मांझे पर बकायदा भारत मे उत्पादित लिखा होता है। जिससे ग्राहक भृमित हो जाता है और उसे बरेली का मांझा समझ कर उपयोग के लिए खरीद लेता है। चाइना मांझे की सबसे बड़ी खूबी यह भी होती है कि यह पानी और धूप में भी आसानी से खराब नही होता। जबकि देशी मांझा धोड़ी से धूप या पानी लगने से कच्चा हो कर टूट जाता है। यही कारण है कि चाइना मांझे में पंछियों के उलझ कर मारने की खबर ज्यादा आती है।

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