बिना बिजली खरीदे दे रहे हैं 3000 करोड़, मध्यप्रदेश से सस्ती बिजली खरीद दिल्ली में रेवड़ी की तरह बंट रही है

घरेलू बिजली और औद्योगिक बिजली की दरें लगभग बराबर हो जाएगी

इंदौर। एक ओर जहां बिजली कंपनी नियामक आयोग में बिजली की दरें बढ़ाने के लिए प्रस्ताव दे रही है, वहीं एक साल में चार बार से ज्यादा फ्यूल कास्ट के नाम पर 15 पैसे प्रति यूनिट महंगी कर चुके हैं। नियामक आयोग से बिजली कंपनियों ने 8.71 प्रतिशत दर बढ़ाने को लेकर अपनी ओर से दिए प्रस्ताव के बाद अब इस पर दावे-आपत्ति भले ही आ रहे हो, परन्तु दूसरी ओर मध्यप्रदेश के बिजली उपभोक्ता देश की सबसे महंगी बिजली खरीद रहे हैं। घरेलू बिजली और औद्योगिक बिजली के टैरिफ में भारी विसंगतियां है तो वहीं बिना बिजली खरीदे 3 हजार करोड़ रुपए सालाना देना पड़ रहे हैं कंपनी को, जबकि मध्यप्रदेश से दिल्ली और अन्य राज्य सस्ती बिजली खरीदकर 300 यूनिट बिजली अपने उपभोक्ताओं को मुफ्त दे रहे हैं। बिजली कंपनी के ही बड़े अधिकारी मानते हैं कि बेतुके निर्णयों के कारण भारी घाटे में जा रही है बिजली कंपनी, तो वहीं 30 हजार कर्मचारियों को कंपनी ने संविदा पर नियुक्त कर रखा है। इससे भी बड़ी राशि विभाग को बच रही है। वहीं बिजली के बिलों में भी भारी विसंगति है। 300 यूनिट घरेलू बिजली का बिल 2423 रु. है, तो औद्योगिक बिजली का बिल 2920 रु. हो रहा है।
एक ओर जहां बिजली कंपनी एक बार फिर घरेलू उपभोक्ताओं पर महंगी बिजली का बोझ डालने जा रही है, तो वहीं नियामक आयोग में 57 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाए जाने को लेकर कंपनी ने प्रस्ताव दिया है, जबकि लगभग सभी राज्य मध्यप्रदेश से सस्ती बिजली दे रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मध्यप्रदेश में बिजली कंपनी ने बिजली उत्पादन करने वाली निजी कंपनियों से बिना बिजली खरीदे ही 3 हजार करोड़ रुपए साल का समझौता कर रखा है। इसके चलते बिजली कंपनी को भारी घाटा हो रहा है। इन कंपनियों से एक यूनिट भी बिजली नहीं खरीदी गई है। जबकि यही कंपनियां दिल्ली सरकार को आधे से कम कीमत पर बिजली दे रही है और केजरीवाल सरकार यही सस्ती बिजली खरीदकर 300 यूनिट बिजली अपने उपभोक्ताओं को मुफ्त दे रहे हैं। कंपनी के ही अधिकारियों का मानना है कि अधिकतम 6 रुपए यूनिट बिजली उपभोक्ताओं को मिलना चाहिए। लंबे समय से 30 हजार कर्मचारियों को 8 हजार रुपए प्रति माह पर संविदा नियुक्ति पर भर्ती कर रखा है, जबकि गड्डे खोदने वाले भी इससे ज्यादा पैसे ले रहे हैं। इधर यदि दो किलो वाट कनेक्शन के घरेलू उपभोक्ताओं के बिल देखे जाए तो 424 यूनिट पर 3562 रुपए बिल बनता है, जबकि कर्मशियल में यही बिल 4021 रुपए बनता है। यानी घरेलू बिजली भी व्यवसायिक बिजली के बराबर ही महंगी मिल रही है। दूसरी ओर 300 यूनिट पर घरेलू बिजली का बिल 2423.32 पैसे बनता है तो व्यवसायिक बिजली में यह बिल 2920 रु. हो रहा है। यानी घरेलू बिजली औद्योगिक बिजली से भी महंगी हो रही है। पूरे भारत में मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य है, जो सबसे महंगी बिजली बेचने का रिकार्ड बना रहा है। हालांकि पेट्रोल-डीजल भी देश में सबसे ज्यादा महंगा मध्यप्रदेश में ही है। इसके अलावा राजस्थान में भी महंगा है। यही स्थिति रही तो आने वाले समय में बड़ी हुई बिजली की दरों की मार सबसे ज्यादा घरेलू उपभोक्ताओं पर ही होगी।

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