खुलेआम बिखेरी जा रही कोरोना प्रोटोकाल की धज्जियां
अगर यह आगाज है तो आगे अंजाम क्याहोगा..?
इंदौर। महानगर में कोरोना की तीसरी लहर का आगाज हो चुका है लेकिन नियम-कानून का पाठ पढ़ाने वाले सरकारी महकमें ही लापरवाह बबने हुए है। आलम यह है कि यही पर कोरोना प्रोटोकाल की खुलेआम धज्जियां बिखेरी जा रही है। न तो अधिकारी-कर्मचारी मास्क में नजर आ रहे है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है। थर्मल गन से चेकिंग भी नहीं हो रही है तो दूसरी ओर सेनेटाइजर भी नदारत हो गया है।
उल्लेखनीय है कि महानगर कोरोना की दो लहरे झेल चुका है। उसकी विभीषिका को भी देख चुका है। अपनो को खोने का दर्द भी अभी भी सताता है। हजारों भाई-बंधु, मित्र, रिश्तेदार और निकट संबंधी असमय ही काल कवलित हो चुके है। हजारों-लाखों लोग बेरोजगारी का शिकार हो चुके हैं, भुखमरी का दंश भी झेल चुके है। दूसरी लहर में जिस तरह श्मशान घाटों, कब्रिस्तान में लाशों की कतार लगी, उसकी स्मृति आज भी रुह कंपा देती है। बावजूद इसके, लापरवाही चरम पर है और हम सबक भी नहीं ले रहे हैं।
सरकारी दफ्तरों में नहीं बरती जा रही सावधानियां
हजारो लोग नगर निगम, प्राधिकरण, आरटीओ, रजिस्ट्रार ऑफिस, कोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड सहित विभिन्न सरकारी दफ्तरों में पहुंच रहे है, लेकिन काउंटर पर न तो सेनेटाइजर है, न ही सोशल डिस्टेंसिंग के गोले कहीं नजर आ रहे हैं। इन दफ्तरों में भी पिछली दो लहरों के दौरान कई कर्मचारी संक्रमित हुए। कई कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। पहले थोड़ी बहुत सख्ती थी, लेकिन अब वह भी खत्म हो चुकी है।
रोकने-टोकने के अभियान ने भी दम तोड़ा
महानगर इंदौर के प्रमुख बाजारों चाहे वह ५६ दुकान हो या सराफा, विजयनगर चाट चौपाटी हो या महूनाका, अन्नपूर्णा रोड़, जहां देखों वहां बेखौफ भीड़ उमड़ रही है। माल में धक्का-मुक्की जैसे हालात है, मंदिरों-मस्जिदों, होटल-पब,बियरबारों में भी लोग उमड़ रहे हैं, जगह-जगह सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक समागम हो रहे है लेकिन कई कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। यह निश्चित ही चिंता का विषय है।
माननीयों का तो फिर कहना ही क्या…
इधर आगामी पंचायत एवं निगम चुनाव को लेकर महानगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में राजनैतिक सरगर्मी एक बार फिर चरम पर जा पहुंची है। माननीयों और राजनेताओं का तो कहना ही क्या? उनके लिए तो मानो कोरोना प्रोटोकाल का भी कोई औचित्य नहीं है। हालात कितने संगीन है इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि कोरोना की तीसरी लहर एवं ओमीक्रान के आगमन के बाद भी लाशों पर राजनैतिक रोटियां सेकने वाले बाज नहीं आ रहे हैं।