20 एकड़ का तालाब हो गया अब मात्र 20 बीघा का
इधर चैनलें बंद कर बनाई टाउनशिप, उधर सरकार तालाब बचाने में जुटी
इंदौर। एक ओर जहां शहर में लगभग सभी तालाब अपने मूल स्वरूप को खो रहे हैं, कई तालाबों की जमीन पर अतिक्रमण हो गया है। इसमें यशवंत सागर से लेकर सिरपुर तक शामिल है। दूसरी ओर होलकर रियासत के ही समय बनाए गए कई तालाब अब केवल अंतिम सांसे ले रहे हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण नगर निगम सीमा से लगा राऊखेड़ी का तालाब है, जो सांवेर विधानसभा में आता है। यदि प्रशासन केवल इसी तालाब को सिरपुर की तर्ज पर विकसित कर दे तो 10 किलोमीटर क्षेत्र में जहां जल स्तर में अच्छी-खासी वृद्धि होगी, वहीं क्षेत्र को एक ओर बड़ा तालाब मिल सकेगा। अभी इस तालाब को समाप्त करने के लिए यहां पर दो टाऊनशीप में इसकी चैनल पूरी तरह बंद कर दी है। अब यहां केवल घास-फूंस और कचरा ही जमा हो रहा है।
जिला प्रशासन द्वारा पिछले 20 सालो में शहर को एक भी नए तालाब को विकसित नहीं कर पाए है। जिसके चलते शहर का भूजल स्तर 600 फिट से भी ज्यादा नीचे चला गया है। वही शहर से लगा राऊ खेड़ी का तालाब की चैनल पर अतिक्रमण होने से यह भी सूख गया। अतिक्रमण का मगरमच्छ इस होलकर कालीन तालाब की निगल गया। इस पर भूमाफियाओं की नजर लग गई है। जल्द ही प्रशासन ने इस पर ध्यान नही दिया तो यहां भी कॉलोनी काट दी जाएंगी। शहर के उत्तर दिशा में स्थित 20 एकड़ में फैला होलकर कालीन तालाब पर दिनों दिन अतिक्रमण होता चला गया। इससे यह तालाब आधे से भी कम रह गया है। ग्रामीणों का कहना है कि कभी इसी तालाब से आसपास के दर्जनों गांव के लोगो की प्यास बुझाई जाती थी। इस झेत्र का यह एक मात्र तालाब था, जिस पर दिनों दिन अतिक्रमण हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि तालाब की चैनल पर कालोनियां काट दी, जिससे इसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। कभी इसी तालाब से आसपास के दर्जनों गांव के लोग की प्यास बुझाने वाला यह तालाब का हलक सूख चुका है। बारिश में तालाब लबालब होने के बाद इसका ओवरफ्लो सीधे शिप्रा नदी में जाता था। भू वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रशासन इस तालाब का रख रखाव सही तरीके से करे और इस पर हुए अतिक्रमण को हटा दें तो यह तालाब फिर से जीवित हो सकता है। जिससे आसपास के दर्जनों गांवों के साथ ही हजारों हैक्टेयर में होने वाली खेती पर भी अच्छा असर पड़ेगा। तालाब भराने सूख चुके बोरिंग फिर से जीवित हो जाएंगे। राऊ खेड़ी के ग्रामीण सुरेंद्र सिंह का कहना है कि तालाब सूख जाने के बाद से खेती पर इसका विपरित असर हुवा है। हमारी खेती तो तालाब से सटी हुई है, बाउजूद इसके खेतो में लगे बोरिंग में पानी ही नही आता है। दो सौ फीट तक कि गहराई वाले बोरिंग के यह हालत है कि उनमें पानी की एक बूंद तक नही आती है। मजबूरी में दूसरी जगह बोरिंग करवाना पड़ रहे है। उनकी गहराई भी पांच सौ से सात सौ फीट से ज्यादा करानी होती है। यह भी गर्मी के सीजन में सूख जाते है। पहले 40 फीट पर ही बोरिंग भरपूर पानी देते थे।