मोदी सरकार के सात साल के कार्यकाल में विरोधियों के यहां 570 छापे मारे गए

सबसे ज्यादा तृणमूल कांग्रेस निशाने पर रही, यूपीए सरकार ने 85 छापे मारे थे

नई दिल्ली (ब्यूरो)। विरोधियों को निपटाने में भाजपा की मोदी सरकार ने यूपीए को पीछे छोड़ दिया है। सात साल में मोदी सरकार ने विरोधियों को निपटाने के लिए 570 छापों में ईडी और इनकम टैक्स का इस्तेमाल किया है, जबकि यूपीए-2 के दौरान विरोधियों के यहां मारे गए छापों की संख्या 85 ही रही थी। इसमें सबसे ज्यादा छापे मोदी सरकार के कार्यकाल में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के यहां डाले गए। इनकी संख्या 36 रही। हालांकि लगभग सभी दलों के दिग्गज नेताओं के यहां छापों की कार्रवाई जारी रही।
उत्तरप्रदेश की चुनावी तैयारियों के बीच अखिलेश यादव के करीबियों के यहां आयकर के छापे मारे गए। इनमें सपा प्रवक्ता राजीव राय, ठेकेदार जगतसिंह और राहुल भसीन प्रमुख रहे। इसके अलावा अखिलेश यादव के ओएसडी जैनेंद्र और मनोज यादव के यहां भी छापों की कार्रवाई की गई। छापेमारी की टाइमिंग को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं। मनमोहन और मोदी सरकार के बीच छापों की तुलना करने में मोदी के राज में विरोधियों के यहां 340 प्रतिशत ज्यादा छापे मारे गए। आंकड़ों से पता लगता है कि जब भी विपक्षी दल बगावत की स्थिति में आए तो छापों की कार्रवाई बढ़ती चली गई। मोदी सरकार के कार्यकाल में विरोधियों के यहां 570 छापे मारे गए। इनमें से चार सौ छापे राजनीतिक विरोधियों के यहां और बाकी सरकार के आलोचकों के यहां मारे गए। 2014 के बाद बीजेपी के गठबंधन सहयोगियों की बात करें तो उनके यहां कुल 39 बार छापेमारी की गई। मनमोहन सरकार में हर साल 17 छापे विरोधियों के यहां डाले गए तो मोदी सरकार ने 75 छापे हर साल डाले। इसी प्रकार से टीएमसी नेताओं के खिलाफ 36 बार रेड मारी गई। आम आदमी पार्टी के नेताओं के खिलाफ 18 और पीडीपी नेताओं के खिलाफ 12 बार छापे मारे गए। एनसीपी के खिलाफ 8, डीएमके के खिलाफ 11, टीडीपी 12, नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ 14, आरजेडी के खिलाफ 8, बीएसपी के खिलाफ 7 और जेडीएस के खिलाफ छह बार छापेमारी की गई। कई और भी छोटे दल हैं, जिनके खिलाफ एक-एक छापे मारे गए। इसके अलावा पत्रकार, मूवी स्टार, एक्टिविस्ट भी छापे की जद में आ गए।

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