9 माह में ही बैंकों के 2 लाख करोड़ के कर्ज डूबे, 7 साल में 11 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज बड़े घरानें खा गए

सरकार ने बाजार से योजनाओं के लिए 12 लाख करोड़ उठाए

मुंबई (ब्यूरो)। एक ओर सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर बनाने का दावा कर रही है दूसरी ओर इस साल भी अभी तक दो लाख करोड़ के कर्ज बैंकों के डूबत ऋण में दर्ज कर दिए गए हैं या इसे यह कहा जाए कि यह कर्ज माफ कर दिए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2014 से अब तक के कार्यकाल में 11 लाख करोड़ रुपए कर्ज औद्योगिक घरानों ने डूबा दिए हैं। सरकार ने यह कर्ज माफ कर दिया है। दूसरी ओर इस साल में सरकार ने अपनी योजनाओं का पूरा करने के लिए 12 लाख करोड़ रुपए के कर्ज अब तक बाजार से उठा लिए हैं। बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के प्रयासों से बाद भी बैंकों की हालत और लचर होती जा रही है।
अंग्रेजी दैनिक में आरबीआई से सूचना के अधिकार में ली जानकारी के बाद यह मामला उजागर किया है कि देश के कई बड़े औद्योगिक घराने बैंकों के पैसों को किस प्रकार लूट रहे हैं, इसकी जानकारी इस प्रकार से है कि इस वित्तिय वर्ष यानि 1 अप्रैल से 31 मार्च 2022 तक ही जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उसमें अभी 3 माह पहले ही दो लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज सरकार ने माफ कर दिए हैं। यह सभी कर्ज कॉर्पोरेट घरानों द्वारा 2014 के बाद उठाए थे। अब तक कुल 10.62 लाख करोड़ के कर्ज सात सालों में सरकार ने माफ किए हैं या यह कहा जाए कि यह कर्ज देने से औद्योगिक घरानों ने हाथ ऊंचे कर दिए हैं। इसमें 75 प्रतिशत पैसा सरकारी बैंकों का है। दूसरी ओर सरकार अपना कामकाज चलाने के लिए बाजार से 12 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज उठा चुकी है। यानि जितना कर्ज उठाया है उतनी ही राशि बैंकों की डूब गई है। संसद में अभी दो सरकारी बैंकों को निजी क्षेत्रों में देने को लेकर भी प्रस्ताव रखा गया है। इसके पूर्व 10 बड़ी बैंकें चार बैंकों में सिमट गई है। इस मामले में सरकार यह भी बताने को तैयार नहीं है कि इन औद्योगिक घरानों से पैसों की वसूली को लेकर क्या कार्रवाई की गई थी? इधर सरकार दावा कर रही है कि देश की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की अगले चार सालों में हो जाएगी, जबकि बैंकों की वसूली और कारोबार में लगातार झटके लग रहे हैं। आरबीआई के जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक 2021 के मार्च महीने की समाप्ति पर भारत का विदेशी कर्ज एक साल पहले से 11.5 अरब डॉलर बढ़ कर 570 अरब डॉलर हो गया। मार्च के अंत में विदेशी कर्ज जीडीपी का 21.1 प्रतिशत था। यह अनुपात एक साल पहले 20.6 प्रतिशत था। विदेशी ऋण में विदेशों से लिया गया वाणिज्यिक ऋण का हिस्सा सबसे ज्यादा (37.4 प्रतिशत) है। इसके बाद प्रवासी जमा धन (24.9 प्रतिशत) और अल्पकालीन व्यापार ऋण (17.1 प्रतिशत) आते हैं। अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व वाला ऋण भारत के विदेशी कर्ज का सबसे बड़ा घटक है। इसकी हिस्सेदारी 52.1 प्रतिशत थी। इसके बाद भारतीय रुपया (33.3 प्रतिशत), जापानी येन (5.8 प्रतिशत), एसडीआर- (4.4 प्रतिशत) और यूरो ऋण (3.5 प्रतिशत) आते हैं।

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