इंदौर में ही प्रशासन की ही 1196 एकड़ जमीन पर हो गए हैं कब्जे

कई जगह अवैध कालोनियों के साथ ही हो गई है नोटरियां

इंदौर। जिला प्रशासन जहां एक ओर भूमाफियाओं से जमीन वापस लेकर आम आदमी को देने का अभियान चला रहा है, तो दूसरी ओर प्रशासन सारे विभागों की ताकत लग जाने के बाद भी अपनी ही भूमि को सुरक्षित रखने में असफल होता जा रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही पुरानी शासकीय भूमि के साथ-साथ शहरी सिलिंग एक्ट जैसे कानूनों के जरिये शासकीय घोषित भूमि की न तो सुरक्षा हो पा रही है और न देखरेख। सरकार की ही इस भूमि पर बड़ी तादाद में कब्जे होने के साथ ही अवैध कालोनियां भी काट दी गई है। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन में वर्ष 2000 में हजारों एकड़ जमीन शासकीय घोषित की गई थी।
शासन के निर्देश पर वर्ष 2000-01 में पूरे प्रदेश में इस प्रकार की जमीनों को लेकर सर्वे किया गया था और इसके बकायदा दस्तावेज भी तैयार किए गए थे। इसी तारतम्य में वर्ष 2002-03 तक सिलिंग से अतिशेष घोषित भूमियों पर निर्मित अवैध कालोनियों के साथ भूखंडों का प्रीमियम और भू भाटक भी निर्धारित कर दिया था, परन्तु इस कार्रवाई के बाद जिला प्रशासन के अधिकारियों ने आगे कोई कार्रवाई नहीं की। सिर्फ इंदौर में ही 1200 एकड़ जमीन शासकीय घोषित की गई थी, जिस पर कब्जा भी ले लिया था। इसी में से पिछले दिनों कनाड़िया रोड पर बने रिवाज और बंधन गार्डन तोड़े गए थे, जो सिलिंग की भूमि पर बनाए गए थे। उल्लेखनीय है कि 31.12.2001 को आयुक्त इंदौर संभाग को भी 237 प्रकरणों में से 1196 एकड़ भूमि पर कब्जा लिए जाने की सूचना भेजी गई थी। इसके साथ ही 58 एकड भूमि पर व्यवस्थापन भी किया गया था, परन्तु अब इसमें से 300 एकड़ जमीन शासन की लापरवाही और ध्यान न दिए जाने के बाद पिछले कई वर्षों से दस्तावेजों में ही उलझी हुई है। अब यहां पर कब्जे के साथ ही सैकड़ों की तादाद में पक्के मकान बनाए जा चुके हैं। 50 एकड़ पर अवैध कालोनी भी कट गई है। एक ओर जहां शासन को अपने ही उद्देश्यों के लिए भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है, वहीं 50 से अधिक स्थानों पर अतिक्रमण करने वाले बगैर कोई मूल्य चुकाए शासकीय भूमि का उपयोग पिछले 20 सालों से कर रहे हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि इन भूमि के लिए संभागायुक्त की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई थी, परन्तु वह भी बिना किसी निर्णय और कार्रवाई के ही समाप्त हो गई। इन जमीनों से 15 दिन में ही अतिक्रमण हटाकर जमीनें कब्जे में लेनी थी। इनमें से ही 80 एकड़ भूमि पर न्याय नगर में केवल एग्रीमेंट के आधार पर ही संस्था के संचालकों ने प्लाट काटकर बेच दिए हैं। जबकि यह अतिशेष भूमि घोषित होने के बाद शासकीय हो चुकी है।

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