भाजपा को मंथन और कांग्रेस को संगठन की जरूरत
इंदौर। कल लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही मतदाताओं द्वारा दिए गए निर्णय के बाद आत्ममंथन की जरूरत है। जहां देश का परिदृश्य बता रहा है कि महंगाई और बेरोजगारी का असर अब देशभर में दिखने लगा है। कांग्रेस यह सोचकर की उसके पक्ष में मतदान हुआ है स्वयं खुश हो सकती है, परंतु जमीन पर कांग्रेस का कोई संगठन नहीं है और न ही कांग्रेस के पास संघ जैसी टीम है जो अपने मतदाताओं को घर से निकालकर मतदान केन्द्र तक ला सके। उम्मीद्वार तय होने के बाद कांग्रेस पूरी तरह भीड़ के भरोसे ही मैदान में होती है। 2024 के पहले कांग्रेस को अपने युवाओं को संगठन से जोड़कर इसे मजबूत करना होगा, तो वहीं भाजपा को भी यह समझना होगा कि पूरी सरकार, सांसद, मंत्रियों को चुनावी मैदान में झोंकने के बाद भी जहां जीत का अंतर कम हुआ वहीं मतदान का प्रतिशत भी उनके पक्ष में बढ़ा नहीं घट गया।
कल मतगणना के बाद ही यह दिखाई देने लगा था कि भाजपा एक बार फिर महंगाई और बेरोजगारी के बाद भी आम लोगों को अपने पक्ष में लाने में मध्यप्रदेश में सफल हुई। इसका कारण मूलत: मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ही रहे। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती हुई कीमतों और बेरोजगारी के अलावा महंगाई के बाद भी जहां लोग केन्द्र सरकार से नाराज रहे वहीं शिवराजसिंह चौहान की कार्यप्रणाली और संगठन की मजबूत ताकत के सामने झुक गए। परिणाम यह हुआ कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में दिख रहे विरोध को भी कांग्रेस भुना नहीं पाई। खंडवा में अरुण यादव की सेवाएं भी भाजपा के काम ही आई, जिन तीन कांग्रेस विधायकों ने भाजपा में दामन थामा था वे अरुण यादव के ही समर्थक रहे थे। इस चुनाव में जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वे ही गलतियां कर रहे हैं जो अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। उन्होंने देश को सब्सीडी से मुक्त कराने के लिए कई कदम उठाए थे, जिनके लिए देश का मानस तैयार नहीं था और इसी कारण उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। इस समय पूरे देश में फ्री और सस्ता की ऐसी बीमारी लग चुकी है कि उन्हें देश से कोई मतलब नहीं। वे केवल उन्हें क्या मुफ्त मिल रहा है, इस पर ही निर्णय कर रहे हैं। दिल्ली में लगातार दो चुनाव में जीत रही आम आदमी पार्टी की सरकार यानी केजरीवाल की सरकार ने दिल्ली में मुफ्त देने के ऐलान से ही अपने आपको स्थापित किया है। अब चाहे बिजली का मामला हो या चाहे पानी का या फिर मुफ्त अनाज का। तेजी से खत्म हो रही सब्सीडी का ही असर बाजार पर भी दिख रहा है। भाजपा को इसलिए भी आत्ममंथन की जरूरत है कि वे जीत का अंतर नहीं बढ़ा पा रहे हैं, बल्कि अब वे लाल निशान के करीब आकर ही अभी जीत रहे हैं। यानी डेढ़ प्रतिशत वोट भी और कम हुआ तो कांग्रेस से भाजपा में आने वाले भी भाजपा को नहीं बचा पाएंगे। भाजपा का ही कार्यकर्ता अपनी छोटीसी उम्मीद खोता जा रहा है। उसकी जगह ऐसे लोग ले रहे हैं जो भाजपा के सिद्धांतों पर भरोसा नहीं करते हैं। यदि अभी भी उन्हें समय रहते सम्मान नहीं मिला तो आने वाला समय भाजपा के लिए बेहतर नहीं होगा। वहीं कांग्रेस के पास अब समय कम है, पर यदि वह मैदान में ताकत के साथ आना चाहती है तो सबसे पहले उसे अपना जमीनी संगठन ही तैयार करना होगा। कांग्रेस सबसे ज्यादा मार बूथ मैनेजमेंट पर ही खाती है। वह मतदाताओं को अपने पक्ष में केवल भाषणों और ट्यूटरों से ही लाना चाहती है जो अब संभव नहीं है। संगठन खड़ा करना अब नेताओं के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए।