शुद्ध मावे की 100 दुकान : नकली को ऐसे पहचाने
रतलाम का मावा इंदौर से सस्ता, कारण-लागत कम होनाुकान : नकली को ऐसे पहचाने
इंदौर (धर्मेन्द्र सिंह चौहान)। शुद्धता के मामले में इंदौर अपनी अलग ही पहचान रखता हैं। इंदौर में बने खाद्य पदार्थो की शुद्धता का लोहा देश के साथ ही विदेशों में भी माना जाता हैं। त्यौहारों के मौसम में नकली मावे की खबर से शहर की जनता विचलित हो जाती हैं। आम उपभोक्ता को यह समझ नहीं आता कि वह शुद्ध मावा कहां से खरीदे, मावे के शुद्ध होने की पहचान क्या हैं। शुद्ध मावा आसानी से कहां मिलता हैं। दैनिक दोपहर की टीम ने शहर के कुछ मावा विक्रेताओं से बात की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
इंदौर शहर में ऐसी सौ से ज्यादा दूध की दुकानें हैं जहां मावा तैयार किया जाता हैं। अगर इनकी दुकानों से मावा खरीदेंगे तो 100 प्रतिशत मावा शुद्ध ही मिलेगा। यह सभी लोग पिछले 50 सालों से इंदौर में ही रहकर मावे का कारोबार कर रहे हैं। इंदौर शहर में रोजना लगभग 10 लाख लीटर दूध का उत्पादन रोजना होता हैं। इसमेें ज्यादातर मावा बनाने के लिए उपयोग किया जाता हैं। इन दुकानों पर ग्राहकों से किसी भी प्रकार का मोल-भाव नहीं होता हैं। जिस किसी भी दुकानदार ने मगर जहां मोल-भाव किया तो समझों मावे की शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह लग गया। कुछ दुकानदार मंडी से भी मावा खरीद कर लाते हैं वहा भी शुद्ध ही होता हैं मगर सस्ता इसलिए होता क्योंकि वह बायलर में बनता हैं और बायलर में लकड़ी का उपयोग होता हैं। जबकि शहर में मावा बनाने के लिए गैस का उपयोग होता हैं। इसलिए इसकी लागत अधिक होता हैं। यह मावा 300 रूपए किलो से कम शहर में नही बिकता हैं। जबकि मंडी से आने वाला मावा के भाव कम ज्यादा होते रहते हैं। मगर छोटी-छोटी दुकानें खोल करधंधा करने वाले त्यौहारों के दिनों में कही से भी मावा खरीद लेते हैं यही मावा ज्यादातर नकली होता हैं। इसलिए मावा हमेशा बड़ी और स्थापित दुकानों से ही खरीदना उचित रहता हैं।
नकली मावे का हब
नकली मावे का हब बन चुके अकेले भिंड जिले के बीहड़ों में ही दर्जनों ऐसे ठिकाने हैं जहां नकली मावा आसानी से तैयार किया जाता हैं। इनमें गोरमी, बरोही, पावई, फूप, अटेर, सुरपुरा, लहार, दबोह, मिलोना, आलमपुर के अलावा दर्जनों गांव ऐसे जो दूर-दराज में होने से जांच दल की पहुंच से दूर हैं। यह भी फूड विभाग की कार्रवाई के बाद चर्चा में आए गांव हैं इसके अलावा बहुत से ऐसे स्थान भी हैं जहां अभी तक न तो पुलिस पहुंची हैं और न ही खाद्य विभाग।
मिलावट में लगने वाला नकली सामान
नकली मावा बनाने के लिए उपयुक्त सामान आसानी से बाजार में मिल जाता हैं। इसमें रिफाइंड व डालडा घी के अलावा दूध, यूरिया, अमोनिया, नाइट्रेट फर्टिलाइजर, शुगर, रिफाइंड, न्यूट्रलाइजर पेरॉक्साइड, फॉर्मालिन, आटा, स्टार्च जैसे सामान को मिलाकर होता हैं मिलावटी मावा तैयार।
नकली मावे का प्रमुख बाजार
इन क्षेत्रों में तैयार किया गया नकली मावा बड़ी आसानी से देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, भोपाल, झांसी, ग्वालियर, इंदौर, दतिया, नागपुर, पुणे के साथ ही दक्षिण भारत के कई शहरों और ग्रामीण इलाकों में प्रमुख रूप से पहुंचाया जाता हैं।
50 से 100 रूपए प्रति किलो फायदा
नकली मावा बनाने वाले 50 से 100 रूपए प्रति किलो के फायदे पर यह गौरख धंधा करते हैं। इन्हें एक किलो नकली मावा बनाने में अधिकतम 150 रूपए तक का खर्च होता हैं। जिसे दुकानदार 300 रुपए प्रतिकिलो आसानी से बैच देते हैं।
सफेद मावे का काला कारोबार
त्योहार आते ही शहर में सफेद मावे का काला कारोबार शुरु हो जाता हैं। खाद्य विभाग के सूत्रों के अनुसार भिंड़-मुरैना नकली मावा का हब बन चुका हैं। बिहड़ के छोटे-छोटे कई गांव ऐसे हैं जहां नकली मावा तैयार कर इंदौर, भोपाल जैसे बड़े शहरों में 50 से 100 रूपए किलो प्रति के मुनाफे पर बेच दिया जाता हैं। भिंड के एक फूड अधिकारी के अनुसार बिहड़ के अंचल में स्थित कई छोटे-बड़े गांवों में रोजना करीब 10 टन मावा तैयार कर देश के साथ ही प्रदेश के कई बड़े शहरों में सवारी बसों पर लोडिंग कर भेजा जाता हैं। दीपावली के पहले यह मावा बसों और अन्य माध्यमों से इंदौर पहुंच रहा है।
तीन तरह का होता हैं मिलावटी मावा
फूड अधिकारी के अनुसार नकली मावा तीन तरह का होता हैं। इसमें वानस्पतिक वसा तथा रिफाइंड से तैयार होने वाला। जिससे मावे की सूंगध में परिवर्तन आ जाता हैं, मावे में अगर रिफाइंड की खुशबू आती हैं तो समझों मावा रिफाइंड से बना हुआ हैं। दूसरा अगर स्टार्च और आलू से मावा बनाया गया हैं ऐसे मावे में थोड़ा सा आयोडिन का लिक्विड डालकर देखा जा सकता हैं। आयोडिन का लिक्विड डालते नकली मावे का रंग नीला हो जाता हैं। अगर मावा पूर्णत: केमिकल्स की मिलावट से बनाया गया है तो उसके लिए परीक्षण फूड एण्ड सेफ्टी विभाग की लैब से ही करवा सकते हैं।