आरती कर महंगाई की… चूड़ियां बेच लुगाई की
राष्ट्र कवि सत्तन ने बढ़ रही कीमतों को लेकर कसा फिर तंज
इंदौर। अपने चुटीले अंदाज से तंज कसने और व्यंग्य कसने वाले राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन लगातार महंगाई को लेकर भाजपा की सरकार को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने महंगाई को लेकर एक कविता में बड़े ही कसे हुए तंज कहे थे तो वहीं इस बार उनकी नई कविता में महंगाई पर लाइनें कुछ इस प्रकार लिखी गई हैं कि… आरती कर महंगाई की… चूड़ियां बेंच लुगाई की।
महंगाई को लेकर उन्होंने सबसे बड़ा सवाल उठाया कि इतनी महंगाई में साधारण आदमी अपने परिवार के सामान को बेचकर ही अपना घर चला सकता है। आम आदमी के बूते से बाहर हो चुका है अब अपना घर चलाना और इस कविता में भी उन्होंने इसी प्रकार का संदेश दिया है। इसके पूर्व वे राजवाड़ा क्षेत्र में हो रही तोड़फोड़ से भी व्यथित थे। उन्होंने तोड़फोड़ को लेकर भी अपनी कविता लिखी थी। शिखर नेताओं में अपनी पहचान बनाने वाले और अटलबिहारी वाजपेयी के प्रिय नेताओं में शुमार रहे सत्यनारायण सत्तन इन दिनों अपने घुटने की तकलीफ से घर पर ही विश्राम कर रहे हैं, परंतु वे भाजपा के शुचिता और संस्कार वाले चरित्र के बाद सत्ता और अंधकार वाले चरित्र से भी दु:खी हैं। उनकी यह दूसरी कविता इन दिनों जमकर वायरल हो रही है…
आरती कर महंगाई की, चूड़ियां बेंच लुगाई की,
कनस्तर पड़ा हुआ बेहाल, नहीं है घर में आटा-दाल,
बजट घर का हो गया उलाल, किचन में चूहे ठोंके ताल,
ये राजनीति की लुच्चाई की, आरती कर लुगाई की,
बड़ा मनमोहन है ये राज, नहीं खाने को मिले अनाज,
हुए मजदूर, कृषक मोहताज, बेशरम को काहे की लाज
हद कर दी टुच्चाई की, आरती कर महंगाई की,
डकैती, चोरी, लूट, खसोट, नारियों की अस्मत पर चोट,
गिन रहे सब अपराधी नोट, गरीबों की छिन गई लंगोट,
ये करनी की इस्माई की, राजनीति इस्माई की आरती कर,
आरती गरीब जो गावे, तालियां विरोधी बजाए,
हथौड़ा हसिया लहराए, सुहै और सोनिया विरोध राग गाए
हद हुई बशर्माई की, आरती कर लुगाई की।
इसके पूर्व 11 अक्टूबर को भी उन्होंने शहर की हालत पर यह कविता लिखी थी
घर दुकान तो तोड़ दिये है,
टूटा दिल किस दिन जोड़ोगे।
पक्की चौड़ी सड़कों पर तुम
साँड़ बने कब तक दौड़ोंगे।
इसी सड़क पर भीख मांगते
वोटों के नेता आयेंगे।
गड्डों में जो कमल खिले थे
कांटों में वो बदल जायेंगे।
रोज सुबह है रोज शाम है
छप्पन इंची राम राम है।