विकास को विनाश के रुप में परिवर्तित न करें…
कह सत्तन कविराय....
इंदौर। किसी भी शहर के विकास की जो प्रक्रिया होती है उसमे जरुरी होता है कि विकास को इस तरीके से किया जाए कि उसमे जनसहयोग भी प्राप्त हो। जनसहयोग और जनभावनाओं के अनुरुप किया गया आचरण ही विकास की प्रक्रिया का सही समाधान होता है। विकास को विनाश के रुप में परिवर्तित नहीं किया जाना था। जनता के नुकसान को ध्यान में रखते हुए अपने आचरण को करना चाहिए। जिन अधिकारियों द्वारा विकास के कार्य को क्रियान्वित किया जाता है उन अधिकारियों का व्यवहार क्रूरतापूर्वक नहीं होना चाहिए।
यह शब्द राष्ट्रकवि और भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन ने इन दिनों शहर में चल रही तोड़फोड़ और सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर इस प्रतिनिधि से कही। वे शहर में चल रही विकास की बयार में मूल धरोहरों के नष्ट होने से भी दुखी थे। आपने कहा विकास शांतिपूर्वक, सदभावनापूर्वक और जनभावनाओं को संतुष्टी प्रदान करने वाला ही होना चाहिए। सत्तन ने तोड़फोड़ को लेकर एक कविता भी सोश्यल मीडिया पर अपने दर्द के रुप में डाली है। आपने भाजपा को लेकर कहा कि अभी भाजपा को चुनौती देने का दम किसी और दल में नहीं है। भाजपा के पास संगठन की बड़ी ताकत है उसका दायित्व है कि वह शहर के विकास को सही दिशा में
घर दुकान तो तोड़ दिये है,
टूटा दिल किस दिन जोड़ोगे।
पक्की चौड़ी सड़कों पर तुम
साँड़ बने कब तक दौड़ोंगे।
इसी सड़क पर भीख मांगते
वोटों के नेता आयेंगे।
गड्डों में जो कमल खिले थे
कांटों में वो बदल जायेंगे।
रोज सुबह है रोज शाम है
छप्पन इंची राम राम है।
– सत्यनारायण सत्तन