सीमेंट, सरिया, रेती, गिट्टी के भाव आसमान पर पहुंचे, मजदूरी भी दोगुनी
सबसे ज्यादा मार मध्यमवर्गीय मकानों की लागत पर पड़ी
इंदौर। महंगाई की मार पिछले तीन सालों में लगातार घर बनाने वालों पर पड़ रही है। हालत यह हो गई है कि एक हजार स्क्वेयर फीट का मकान जहां तीन साल पहले साढ़े आठ लाख रुपए में तैयार हो जाता था, वह अब बढ़कर तेरह लाख के पार पहुंच गया है। रेती, गिट्टी, सरिया तीन सालों में ही तीस से चालीस प्रतिशत तक महंगा हो गया है, दूसरी ओर अब महंगी लकड़ी के चलते घरों में लगने वाले दरवाजे प्लाइवुड के बनाए जा रहे हैं। इन दिनों सबसे ज्यादा महंगा सरिया घर बनाने वालों की कमर तोड़ रहा है तो वहीं रेती के भाव आसमान छू रहे हैं। कुल मिलाकर मकान बनाने पर होने वाला खर्च इतना महंगा होने के बाद लोग अपने मकान छोटे कर रहे हैं।
तीन सालों में मकानों की कीमतों को लेकर किए गए सर्वे में जानकारी जो निकलकर सामने आई है, वो बता रही है कि भयावह महंगाई का असर मकान के निर्माणों पर दिखाई देने लगा है। एक हजार वर्गफीट मकान का निर्माण करने वाले अपने मकानों को दो सौ फीट तक कम कर रहे हैं। 2018 में जहां सीमेंट अधिकतम तीन सौ रुपए थी तो वहीं ईंट पांच हजार रुपए प्रति हजार थी। इसी के साथ रेती चालीस रुपए घनफीट और गिट्टी छह सौ पचास रुपए मीटर, सरिया 3800 से 4000 रुपए क्विंटल था, वहीं लकड़ी सस्ती होने के कारण दरवाजे सागवान के ही बन रहे थे, वहीं 2019-2020 में कोरोना महामारी के चलते लगभग निर्माण के सभी काम पूरी तरह से बंद हो चुके थे। जहां चल रहे थे, उसमें भी कीमतों में दस प्रतिशत की ही वृद्धि दिखाई दे रही थी, परंतु अब 2021 में मकान के निर्माण में लगने वाली सामग्री के भाव में ऐसी आग लगी कि मकान के निर्माण में मध्यमवर्गीय परिवार पर भारी बोझ बढ़ गया। छोटा सा मकान बनाने पर भी पांच लाख रुपए का अतिरिक्त खर्च भोगना पड़ रहा है। अभी बाजार में गिट्टी का भाव तीन सौ रुपए तक बढ़कर 850-900 रुपए मीटर तक पहुंच गया है तो वहीं रेती का चौदह पहिए का हाईवा ट्रक अब 75000 हजार रुपए में इंदौर आ रहा है। सीमेंट साढ़े तीन सौ रुपए प्रति बोरी हो चुकी है, तो वहीं सरिया ड्योढ़े भाव बढ़कर पैंसठ रुपए किलो तक पहुंच गया है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने के कारण भी सामानों पर असर दिख रहा है तो वहीं सस्ते आने वाले ड्रेनेज पाइप, वाटर पाइप भी दोगुने भाव में पहुंच गए हैं। सागवान की कीमतें इतनी ज्यादा हो गई हैं कि अब इसे खरीदना ही लोगों ने बंद कर दिया है। मलेशिया से आने वाले पाइनवुड से दरवाजे बनाए जा रहे हैं। सागवान 12000 रुपए घनफुट तक बेचा जा रहा है।
मजदूरी के भाव दोगुने
कोरोना महामारी के पहले जहां लेबर और मिस्त्री सामान्य स्थिति में मिल जाते थे, 2018 से 2019 के बीच अच्छा मिस्त्री आठ सौ रुपए प्रतिदिन और मजदूर 400 रुपए प्रतिदिन तक होते थे। अब मजदूर सात सौ से आठ सौ रुपए तक पहुंच गए हैं तो अच्छे मिस्त्री तेरह सौ रुपए प्रतिदिन पर काम कर रहे हैं।
मकानों की कीमतें भी बढ़ीं
अलग-अलग क्षेत्रों में जहां पहले एक हजार वर्गफुट के मकान बीस से पच्चीस लाख के बीच मिल जाते थे, वहीं अब इस कीमत पर सात सौ वर्गफुट के रो-हाउस मिल रहे हैं। कई जगहों पर महंगाई के कारण मकानों के निर्माण में गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न उठाया है।