जितने का दावा था और मैदान में उतरने से पहले ही कांग्रेस हार गई

जमीनी नेताओं की पकड़ अब समाप्त, आपसी झगड़े ही ले डूबेंगे कांग्रेस को

इंदौर। उपचुनाव को लेकर जहां कांग्रेस की मुसीबतें कम नहीं हो रही है। वहीं पिछले कई महीनों से खंडवा लोकसभा सीट पर अपने समीकरण बना रहे पूर्व सांसद रहे अरुण यादव ने आखिरी समय में पत्र लिखकर अपनी उम्मीदवारी को समाप्त कर दिया है। पिछले दो दिनों से उनके द्वारा किए जा रहे ट्वीट से यह तय हो गया था कि वे चुनाव से पीछे हट सकते है। एक ओर जहां उन्होंने कुशल राजनेता का हुनर दिखाया है। वहीं भाजपा को अब बिना मेहनत के यहां पर वाकओवर मिलना तय हो गया है। सूत्र कह रहे है अरुण यादव को दिग्गज नेताओं के षडयंत्र की भनक लग गई थी। उन्हें यह मालूम हो गया था कि बाला बच्चन, रवि जोशी, विजयलक्ष्मी साधौ सहित अन्य कांग्रेस नेता उन्हें इस चुनाव में स्थापित नहीं होने देंगे। दूसरी ओर विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में लगभग उम्मीदवारों के चयन की स्थिति पूरी होती जा रही है। रेगांव सीट से उषा चौधरी का टिकिट तय हो गया है जबकि जोबट से महेश पटेल के नाम को लगभग हरी झंडी मिलना तय है।

मध्यप्रदेश में 3 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट को लेकर जहां भाजपा ने उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया है पर संगठन स्तर पर भाजपा की अपनी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। दूसरी ओर कांग्रेस में लोकसभा के खंडवा सीट पर अरुण यादव को लेकर लगभग उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी। परंतु उनके द्वारा दो दिन पहले किए गए ट्वीट में लिखा गया था मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद है शायद, वक्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते है मेरी गली से गुजरते है छुपाके खंजर रुबरु होने पर सलाम किया करते है… उनके इस ट्विट में कांग्रेस की चल रही राजनीति का पर्दा उठ गया। चूंकि उपचुनाव में वे जानते है कि यह चुनाव सरकार ही लड़ेगी और शिवराजसिंह चौहान लोकसभा की एक भी सीट कम करवाकर अपने नंबर घटाना नहीं चाहेंगे भले ही वे विधानसभा की तीनों सीटें खो दे और इसे ही देखते हुए उन्होंने यह भी देखा कि कांग्रेस में क्षेत्र के दिग्गज नेता बाला बच्चन हो या विजय लक्ष्मी साधौ यह भी अरुण यादव को यहां इस बार स्थापित नहीं होने देंगे। ऐसे में उन्हें अगले चुनाव तक रुकना ही बेहतर समझ में आया है। लंबे समय से अरुण यादव के इन नेताओं से रिश्ते बेहतर नहीं है। ये सभी नेता अरुण यादव को निपटाने में कोई कसर नहीं रखेंगे। इनके प्रभावी क्षेत्रों से भी अरुण यादव को हार दिखाई दे रही थी। ऐसे में उन्होंने अपने कदम पीछे हटाना ही बेहतर समझा। दूसरी ओर जिन भी नेताओं के कांग्रेस में नाम चल रहे है उनमें से एक भी ताकतवर ऐसा नहीं है जिसका पूरी 6 विधानसभा में प्रभाव हो। अत: उम्मीदवारों के चयन के पहले ही कांग्रेस ने भाजपा के तमाम विरोधों का लाभ उठाने का अवसर तो खो ही दिया दूसरी ओर इन कारणों से कांग्रेस के बड़े नेताओं की क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे है। माना जा रहा है कमलनाथ कमरों के नेता है जमीनी आधार पर वे कांग्रेस को मध्यप्रदेश में खड़ा नहीं कर पाएंगे। पूरी कांग्रेस भाग्य के भरोसे ही मैदान में अगली बार भी उतरेगी।

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