माफियाओं से संस्थाओं को जमीन वापस लेने के लिए चाहिए करोड़ों की स्टाम्प ड्यूटी

5000 से अधिक भूखंडों की रजिस्ट्रियाँ संस्थाओं में अभी भी उलझी हुई है...

इंदौर। शहर में विवादास्पद संस्थाओं में जहां भूखंड बांटने को लेकर प्रशासन ने अभियान चला रखा है तो दूसरी ओर संस्थाओं में सरेंडर की जा रही जमीनों को वापस लेने के लिए संस्थाओं के पास स्टाम्प ड्यूटी के पैसे का बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। इंदौर में अलग अलग संस्थाओं ने पांच हजार से अधिक ऐसे प्लाट है जो सरेंडर होने हैं। कई जगहों पर संस्थाएँ सरेंडर प्लाट के पैसे नहीं दे पा रही है। ऐसे मामलों में रजिस्ट्री निरस्तीकरण के लिए सहकारिता विभाग को अब प्रकरण न्यायालय में पेश करने होंगे। इसके लिए संपत्ति के मूल्य का १३ फीसदी स्टाम्प ड्यूटी भी जमा करानी होगी। अयोध्यापुरी सहित कई संस्थाओं की जमीनें भूमाफियाओं ने खरीद रखी है। इन जमीनों की वापसी के लिए भी संस्थाओं को लाखों रुपए की स्टाम्प ड्यूटी देनी होगी।
इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश में गृहनिर्माण सहकारी संस्थाओं में भूखंडों के आवंटन को लेकर हुई धांधलियों के बाद बीस वर्ष से अधिक की लड़ाई लड़ने के बाद जहां पात्र लोगों को भूखंड दिये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर अवैधानिक रुप से समितियों द्वारा बेची गई भूमि वापस लेकर उनकी रजिस्ट्री निरस्त करने के लिए न्यायालय में भी शरण ली जा रही है। इंदौर में संस्थाओं की लगभग चार सौ एकड़ जमीनें भूमाफियाओं के चंगुल में उलझी हुई है। कुछ संस्थाओं की पूरी जमीन ही भूमाफियाओं के पास पहुंच चुकी है। ऐसे में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद जिला उपपंजीयकों से गड़बड़ी वाली समितियों की जानकारी मांगी गई है। पूरे प्रदेश में २१४७ गृहनिर्माण संस्थाएँ हैं इसमे ५०० के लगभग इंदौर में हैं और सर्वाधिक गड़बड़ी की शिकायतें भी यहीं पर है। पांच हजार से अधिक शिकायतें अभी भी सहकारिता विभाग में झूल रही है। संस्थाओं ने कई वर्ष पहले अपनी जमीन का कुछ हिस्सा भूमाफियाओं को बेच दिया है। अब सरकार के दबाव के चलते यह जमीनें सरेंडर हो रही है। अयोध्यापुरी में अभी भी भूमाफियाओं ने जमीन सरेंडर न करते हुए प्लाट आवंटन को लेकर भी चुनौती दी है। इसमे कहा है कि यह भूमि स्वास्थ्य के लिए योजना में थी और स्वास्थ्य की जमीनें का भूपरिवर्तन नहीं हो सकता है। प्रशासन ने सहकारी अधिनियम की धारा ७२ का उल्लंघन पाये जाने पर ऐसे मामलों में भूमि वापस लेने के साथ ही खरीददारों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करवाई है। कुछ संस्थाओं में पदाधिकारी जमीनों की जानकारी देने में भी कतरा रहे हैं।
करोड़ों रुपए की स्टाम्प ड्यूटी विवाद में
शहर में लगभग २०० एकड़ से ज्यादा जमीन भूमाफियाओं से मुक्त होकर वापस संस्थाओं के रिकार्ड में दर्ज होना है। परंतु इनके लिए १३ फीसदी की स्टाम्प ड्यूटी भी संस्था को ही देनी है। इनमें कई संस्थाओं को लाखों रुपए स्टाम्प ड्यूटी के लिए चाहिए। जो उनके पास नहीं है। कुल मिलाकर संस्थाओं द्वारा वापस ली गई जमीन भी समय के साथ वापस माफियाओं के हाथ में पहुंच जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। दूसरी ओर पांच हजार से अधिक ऐसे रजिस्ट्रियां संस्थाओं की है जहां प्लाट ही नहीं है या योजनाओं में जमीन चली गई है। यह विवाद भी संस्थाओं के लिए लंबे समय से मुसीबत बने हुए हैं।
धारा ७२ में सजा का प्रावधान
पंजीयक की अनुमति के बिना भूमि विक्रय नहीं हो सकती है। धारा ७२ डी (९) में इसी अपराध कहा गया है। इस अपराध में तीन साल की सजा और पांच लाख रुपए का जुर्माना देना होगा। मजेदार बात यह है कि जिन संस्थाओं में भूमाफियाओं को जमीन खरीदने का अपराधी बताया गया है इन सभी संस्थाओं में जमीन बेचने के लिए पंजीयक ने ही अनुमति दी है।

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