बढ़ती गैस की कीमतों ने लगाई आग, नहीं उठ रहे उज्जवला गैस सिलेंडर

घासलेट, लकड़ी, इंडक्शन चूल्हे का बढ़ाया लोगों ने उपयोग

इंदौर (संजय नजाण)।
इन दिनों तमाम गैस एजेंसी संचालक परेशान है उसका सबसे बड़ा कारण है गैस सिलेंडरों का नहीं उठना। बताया जा रहा है जैसे जैसे गैस की कीमतों में वृद्धि होती जा रही है लोगों ने इस पर अपनी निर्भरता कम करना शुरु कर दी है। हालात यह है कि जिस उज्जवला गैस सिलेंडर का केंद्र सरकार, केंद्रिय पेट्रोलियम मंत्रालय ने भारी तामझाम के साथ प्रचार प्रसार किया था और लाभ गिनवाये थे आज यही लोग पर्दे के पीछे जाने को और हालात के आगे मुंह छिपाने को मजबूर है। इंदौर में ६९ हजार उज्जवला कनेक्शन धारक हैं लेकिन इनमें से आधे लोग २ और ३ महीने तक सिलेंडर ही नहीं उठा रहे हैं जबकि एक सामान्य परिवार में एक ओर डेढ़ माह में गैस द्घसलेंडर खत्म हो जाता है।
खाद्य विभाग सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों विभिन्न गैस एजेंसियों पर सामान्य गैस सिलैंडर के साथ साथ विशेष श्रैणी के उज्जवला गैस सिलेंडर भी नहीं उठ रहे हैं। यानि इनकी खपत में कमी हो गई है। उज्जवला गैस कनेक्शनधारी इन सिलेंडरों को हजार रुपये देकर लेने के बजाए इससे आधे या ७० प्रतिशत राशि तक उपलब्ध होने वाले अन्य संसाधनों पर ज्यादा ध्यान देकर महंगाई के इस दौर में राशि बचाने और बचत का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल जिस प्रकार पिछले लगभग छह महीनों में गैस की कीमतों में वृद्धि हुई है उसमे मध्यमवर्ग से लगाकर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले की रसोई और घर का बजट बिगाड़ दिया है। अब इस बिगड़े हुए ढर्रे को सुधारने के लिए लोगों ने विकल्पों पर काम करना शुरु कर दिया है। विकल्प के रुप में लोगों ने लकड़ी, इंडक्शन चूल्हा, सिगड़ी और इलेक्ट्रिक सिगड़ी का उपयोग भी बढ़ा दिया है। बताया जाता है कि इन दिनों पानी गर्म करने की इलेक्ट्रिक राड की जहां एकाएक बिक्री बढ़ गई है तो इंडक्शन चूल्हे का उपयोग तो हो ही रहा था। अब इलेक्ट्रिक सिगड़ी की पूछपरख भी बढ़ गई है। इधर कई गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों ने अपने पुराने दिनों को ताजा करते हुए लकड़ी के गुटके और सिगड़ी का उपयोग आरंभ कर दिया है। यह लगभग आधा दर्जन ऐसे विकल्प है जिनका की सभी लोग अपने अपने स्तर पर अपने अपने हिसाब से उपयोग कर गैस सिलेंडरों पर अपनी निर्भरता को कम कर रहे हैं।
फिर बढ़ेगी ५० रुपए कीमत
सूत्रों का कहना है कि पिछले छह महीने से कभी १० रुपए तो कभी २० रुपए तो कभी २५ रुपए गैस सिलेंडर की कीमतों में वृद्धि होती जा रही है। बताया जाता है कि आगामी दीपावली त्यौहार तक यानि की दो तीन महीनों में गैस की टंकी की कीमतों में ५० रुपए का उछाल आ सकता है। ऐसे में जिन्होंने विकल्पों को अपना लिया है उन्होंने अपने घाटे की क्षतिपूर्ति का इंतजाम कर लिया है। और यही हालात रहे तो बाकि लोग भी ऐसे ही विकल्पों को अपना सकते हैं।

टापअप सिलेंडर दे रहा है उज्जवला सिलेंडर को चुनौती
एक ओर जहां महंगा गैस सिलेंडरों से निपटने के लिए लोग तमाम प्रकार के उपाय कर रहे हैं और विकल्पों को भी अपनान रहे हैं तो दूसरी तरफ टापअप सिलेंडरों ने भी धूम मचा रखी है। लोग आकस्मिक संकट के दौर में ऐसे एक टापअप छोटे सिलेंडरों को भी भरवाकर जैसे तैसे काम चला रहे हैं। यानि किसी गरीब अथवा मध्यमवर्गीय व्यक्ति के पास खाते का सिलेंडर लेने के लिए हजार रुपए नहीं हैं तो वह दो ढाई सौ रुपए में टापअप सिलेंडर भरवाकर हफ्ते दस दिन के लिए अपना काम चला रहा है और आर्थिक संकट के दौर में उसने यह जो पतली गली पकड़ी है। उसने तमाम गैस एजेंसी संचालकों की नींद उड़ा रखी है। हालांकि इसकी रिफलिंग अवैध है तथा भमौरी, मालवामिल, पाटनीपुरा, अहिल्यापल्टन, गफुर खा की बजरिया, जूना रिसाला क्षेत्र में यह काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। जो कि कभी गंभीर दुर्घटना को भी जन्म दे सकता है। यह अलग बात है कि जान से बेखबर टॉपअप सिलेंडर अभी भी लोगों की पसंद बना हुआ है।
लकड़ी, घासलेट, इंडक्शन चूल्हे की उपयोगिता बढ़ी
इस संदर्भ में जब संवाददाता ने अलग अलग वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध करवाने वाले विक्रेताओं से चर्चा की तो बड़ी ही रोचक और चौकाने वाली जानकारी सामने आई। एक बार फिर लकड़ी की पूछपरख बढ़ गई है और कई ऐसे लोग जो कि पहले सिगड़ियों पर खाना बना चुके थेउन्होंने लोहारपट्टी, भमौरी सहित अन्य क्षेत्रों से सिगड़ियां खरीद ली है और लकड़ी के गुटखोंपर वे खाना बनाने, पानी गर्म करने सहित अन्य कार्य करने लगे हैं। इसके साथ ही कंट्रोल पर भी अब भले ही घासलेट पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो लेकिन ब्लैक में भी घासलेट लेकर लोगों ने स्टोव का उपयोग बढ़ा दिया है। तो जिनकी आय थोड़ी बहुत ठीक है उन्होंने थोड़ा आगे कदम बढ़ाते हुए गैस के उपयोग के बजाए इंडक्शन चूल्हे का उपयोग करना शुरु कर दिया है। इन विकल्पों ने बढ़ती हुई गैस की कीमतों को लगाम लगाने का नया प्रयोग लोगों के हाथों में दे दिया है।

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