आसान नहीं होता गोगा देव का निशान उठाना
सवा माह परिवार से दूर उपवास के साथ करना होता है ब्रह्मचर्य का पालन
इंदौर। आज गोगावनमी पर्व पर पूरे शहर की वाल्मीकि बस्तियों से अस्सी से ज्यादा छोटे और बड़े निशान पूरे सम्मान के साथ निकाले जाएंगे। जो लोग केवल इसे छड़ी पर्व के रूप में जानते हैं, यह खबर उन सभी के लिए है, जो यह समझें कि वाल्मीकि समाज में इस छड़ी को उठाना आसान नहीं होता। इसके लिए उन लोगों को सवा माह पूरे नियम-धर्म के साथ उपवास पर रहना होता है। नियम इतने सख्त हैं कि जो भी लोग इस छड़ी को उठाने के बाद अपने-अपने क्षेत्रों में घूमते हैं, वे सवा महीने तक महिलाओं के हाथ का छुआ भोजन भी नहीं लेते हैं। पूरे महीने अपने हाथों से बनाकर खाते हैं। इन छड़ी को इनके अलावा कोई और नहीं स्पर्श कर सकता है।
पिछले चालीस बरस से निशान उठा रहे राजमोहल्ला वाल्मीक जयंती वीरू भगत चिंतामन ने बताया कि वाल्मीकि समाज का हरसिद्धि पर गोगादेव का मंदिर है, जहां पर पूरे शहर से उठने वाले निशान नवमी के दिन पहुंचते हैं और गोगादेवजी के सम्मान में उन्हें वहां झुकाया जाता है। अभी दो साल से मंदिर पर प्रवेश के लिए लगी रोक के बाद अब राजमोहल्ला पर यह प्रक्रिया की जा रही है। वाल्मीकि समाज में पूरे सवा महीने धूमधाम से छड़ी पर्व बाबा रतनसिंहजी की याद में, जो जाहरवीर गोगादेव चौहान का झंडा लेकर चलते थे, इनके सैनिक भी थे, जो नाथ संप्रदाय से आते हैं, उनके सम्मान में वाल्मीक बस्तियों से जगह-जगह निशान, जिन्हें छड़ी भी कहा जाता है, उन्हें सजाया जाता है। इन्हें उठाने वाला अपनी कमर में डंप बांधकर बड़े धूमधाम से ढोल के साथ बस्तियों में घूमता है। इस निशान को भव्यता प्रदान करने के लिए मोरपंख सहित अन्य सामान से सजाया जाता है। निशान उठाने वाले लड़के, जिन्हें बाबा का घोड़ा या सवैया कहा जाता है, इसके अलावा और उसके साथ पांच के लगभग अन्य साथी वे भी नंगे पांव ही इस निशान के साथ घूमते हैं। इस निशान को स्पर्श नहीं किया जा सकता। वे ही इसे स्पर्श कर सकते हैं, जो अपना घर छोड़कर सवा महीने उपवास रखने के साथ ही अपने हाथ से बनाया खाना ही खाते हैं। सख्त नियम से निशान उठाने वाले घोड़े गोगानवमी के दिन गोगामेणी पर निशान की सलामी देकर अपने उपवास खोलते हैं। इस निशान को किसी भी प्रकार के राजनीतिक व्यवहार के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। यह पूरी तरह से वाल्मीक समाज का धार्मिक आयोजन है। इंदौर में वाल्मीकि समाज के यह निशान राजमोहल्ला, उषा फाटक, पलासिया, भंवरकुआं, गाड़ी अड्डा, अमर टेकरी, छावनी, देवनगर, बियाबानी, कमाठीपुरा, जूना रिसाला, मरीमाता, नया बसेरा, वाल्मीक नगर सहित अस्सी बस्तियों से उठाया जाता है।