खंडहर हुई 50 एकड़ में बनी 18 करोड़ की अधूरी जेल

इंदौर। वर्ष 2002 में सांवेर रोड पर 50 एकड़ जमीन शासन ने नई जेल के लिए आवंटित की थी। मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड को इसकी निर्माण जिम्मेदारी सौंपी गई। बोर्ड ने इस पर 18 करोड़ खर्च कर बाउंड्रीवाल के साथ ही स्टाफ क्वाटर्स और मुख्य द्वार बनाकर इसे अधूरा ही छोड़ दिया। नतीजतन शहर में स्थित दोनों जेलों में कैदियों को जेल की क्षमता से अधिक रखा जा रहा है।
जिला और सेंट्रल जेल में कैदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा हो रही है। 800 से 1100 कैदियों की क्षमता वाले सेंट्रल जेल में 2 हजार से ज्यादा कैदी रखना जेल प्रशासन की मजबूरी बन गया है। वहीं जिला जेल में भी यही हालात हैं। यहां पुरुष कैदियों की क्षमता लगभग 400 है मगर यहां भी लगभग 2 हजार से ज्यादा कैदी सजा काट रहे हैं। हालत यह है कि कैदी को एक ही करवट सोना पड़ता है। उसे सोने की जगह भी मुश्किल से मिलती है। कई बार तो जेलकर्मियों को पैसे तक देना पड़ते हैं। भोजन की गुणवत्ता भी ठीक नहीं है।
जिला जेल में महिला बंदियों की संख्या भी 60 से अधिक हो रही है। इनमें वह कैदी भी शामिल है, जिनके प्रकरण विचाराधीन हैं। इंदौर की जेलों के हालात इसलिए भी बद से बदतर हो रहे हैं क्योंकि सांवेर रोड के पास करोड़ों रुपए की लागत से बनने वाली नई जेल हाउसिंग बोर्ड और अन्य विभागों में चल रही खींचतानी के बीच अटकी पड़ी है। यहां हाउसिंग बोर्ड ने करोड़ों रुपए खर्च कर नई इमारत तो बना दी मगर प्रशासन ने इसे अभी तक मंजूरी नहीं दी। ऐसे में यह जेल रखरखाव के अभाव में खंडहर हो रही है। यहां स्टाफ के लिए बनाए गए मकानों से दरवाजे, खिड़कियां के साथ ही अन्य कीमती सामान चोरी हो चुका है। ऐसे में 144 साल पुरानी सेंट्रल और 182 साल पुरानी जिला जेल में कैदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा होना स्वभाविक ही हैं। जेल सूत्रों की मानें तो ऐसे ही हालात प्रदेश की सभी जेलों के हो रहे हैं। मध्यप्रदेश में 10 बड़ी सेंट्रल जेल है, जबकि छोटी-बड़ी उपजेल और जिला जेल को मिलाकर यह संख्या लगभग 200 बताई जा रही है। इन 200 जेलों में लगभग 25 से 28 हजार कैदियों की क्षमता है, जबकि इन जेलों में 40 से 45 हजार कैदी सजा काट रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड से अनुबंध कर निर्माण पर 18 करोड़ खर्च करने के बाद काम रोक दिया गया। अधूरे काम पूरा करने के लिए हाईपावर कमेटी ने 60 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। जल्दी ही इस संबंध में टेंडर बुलवा लिए जाएंगे।
लाकअप बनना शेष
बोर्ड द्वारा सांवेर रोड स्थित जेल की दिवार और स्टाफ क्वाटरर्स बनाए गए थे। बोर्ड ने इस पर ही करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। जेल परिसर की ऊंची दीवारों के बीच बंदियों के लाकअप बनना शेष रह गए हैं। अब लागत कम होने का कहकर बोर्ड ने अपने हाथ खींच लिए हैं। तभी से यह प्रोजेक्ट अटका पड़ा हुआ है। बाद में मामला पीडब्ल्यूडी के पास भी गया, मगर इसकी फाइल आगे ही नहीं बढ़़ पाने के कारण प्रोजेक्ट अभी तक पूरा नहीं हो पाया। नतीजतन करोड़ों खर्च करने के बाद भी यह अनुपयोगी हो गई है, जिसके चलते जिला जेल और सेंट्रल जेल में कैदियों की क्षमता से अधिक रखा जा रहा है।

खाने की गुणवत्ता पर असर
पंद्रह अगस्त पर जेल से रिहा हुए कैदियों ने दैनिक दोपहर की टीम को बताया कि जेल में कैदियों की संख्या क्षमता से पांच गुना अधिक है। दिन तो आसानी से कट जाता है मगर रात होते ही सोने की जगह नहीं रहती है। मजबूरीवश एक ही करवट सोना पड़ता है। हर रात कैदियों को सोने की जगह के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वहीं अधिक संख्या में कैदी होने के कारण जेल में मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है। क्योंकि जेलों में कैदियों की संख्या तो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है मगर जेल का बजट वही वर्षों पुराना ही चला आ रहा है। जिससे पानी वाली दाल और बगैर तरी वाली सब्जी यहां के कैदी खाने को मजबूर हो रहे हैं। जिला जेल से छूटे कैदी ने बताया कि जेल में कुछ सब्जियां भी उगाई जाती है मगर वह भी पर्याप्त नहीं होती है।

 

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