दो विभागों में फंसा प्रदेश का सबसे बड़ा आरओबी वाला सुपर कॉरिडोर

आईडीए ने ठंडे बस्ते में डाल दिए यातायात पुलिस के 11 सुझाव

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)।
सुपर कॉरिडोर पर दुर्घटनाओं को रोकने के लिए यातायात पुलिस द्वारा जीरो टॉलरेंस जोन बनाने के लिए इंदौर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को 11 बिंदु बताए गए थे। मगर आईडीए के अधिकारियों ने कुछ पर काम किया बाकी ऐसे ही छोड़ दिए। यही कारण हैं कि चार साल बितने के बाद भी जीरो टॉलरेंस जोन नहीं बन पाया सुपर कॉरिडोर।
14 अप्रेल 2016 प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे ओव्हर ब्रिज का उदघाटन किया गया था। इस पर होने वाली दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने इंदौर विकास प्राधिकरण को 11 बिंदुओं पर काम करने का सुझाव दिया था, जिससे सुपर कॉरिडोर को जीरो टॉलरेंस जोन बनया जा सके। यहां पर 2019 में हुए हादसे के दौरान एक प्रोफेसर की मौत हो गई थी। इसके बाद लगातार यहां पर दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी हैं। बावजूद इसके प्राधिकरण इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। यातायात पुलिस ने कॉरिडोर पर कुछ जरूरी कामों को लेकर 11 बिन्दुओं चिन्हित किए थे, चार साल में प्राधिकरण के कुछ काम किए कुछ अधूरे ही छोड़ दिए। नतीजतन यहां दुर्घटनाओं में लोग घायल हो रहे हैं। लोग मंहगी गाडिय़ों से रेस लगा रहे है जिससे हादसे हो रहे हैं। कई जगह बड़े वाहनों की पार्किंग होने लगी। कॉरिडोर के डिवाईडरों पर अभी भी बहुत से मनमाने कट ऐसे ही हैं जिनमें से दो पहिया वाहन चालक आसानी से निकल रहे हैं जिससे हादसों में कमी नहीं आ रही है। इसके पहले भी यहां एक प्रोफेसर की मौत हो चुकी है, आए दिन कई हादसे होते रहते है। इन्हीं हादसो को रोकने के लिए यातायात पुलिस ने इसे जीरो टॉलरेंस जोन बनाने की योजना बनाई थी। यातायात पुलिस ने आईडीए की टीम के साथ यहां बकायादा दौरा भी किया था, जिसमें कई खामियां मिली थी। इस दौरे की रिपोर्ट में बताया गया था कि सुपर कॉरिडोर पर दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह वाहनों की तेज रफ्तार है। यहां वाहनों की स्पीड 80 से 120 तक की होती है। डिवाइडरों पर जगह-जगह कट बने हुए है, मार्ग संकेतक ग्रीन बेल्ट में छुप गए हैं। एयरपोर्ट से गांधी नगर तक कॉरिडोर के सभी चौराहों पर स्पीड ब्रेकर बनाए जाए। आईडीए ने कुछ जगह ब्रेकर बनाए कुछ जगह छोड़ दिए। वहीं रेडियम वाले बोर्ड लगाने की हिदायत भी दी जिससे दूर से ही वाहन चालक अपनी स्पीड कंट्रोल कर सके। कुछ स्थानों पर बोर्ड तो लगा दिए मगर लगाने के बाद इन पर ध्यान नहीं दिया, कई जगह यह बोर्ड टूटे पड़े हुए है, तो कई जगह ग्रीन बेल्ट में छूप गए। कई जगह लोगों द्वारा लगाए गए कट भी बंद नहीं किए। छोटा बांगडदा और बड़ा बांगडदा चौराहों की सर्विस रोड पर स्पीड ब्रेकर बनाने थे जो नहीं बनाए। चौराहों पर रोटरी बनानी थी जो नहीं बनाई गई। कुछ जगह टूटे पड़े चैम्बरों के ढक्कन पर बैरिकेट्स लगाकर दिए गए हैं। वहीं सबसे अहम कॉरिडोर के दोनों तरफ ग्रीन बेल्ट में टूटी हुई जालियों को बदला जाए जिससे चौपाएं और लोगों का मुख्य सड़क पर आवाजाही बंद हो सके। ग्रीन बेल्ट की झाडिय़ों की कटिंग की जाए जिससे साइन बोर्ड वाहन चालकों को आसानी से दिखाई दे सकें। इस बात को चार से होने को आई बावजूद इसके आईडीए ने कुछ बिंदुओं पर काम तो किया मगर कुछ को ऐसे ही छोड़ दिया। इसके बाद यातायात पुलिस ने भी यहां दोबारा पलट कर नहीं देखा, न ही इंदौर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने यहां बचे हुए काम को पूरा करने की सुध ली। नतीजतन वाहन चालकों के लिए सुपर कॉरिडोर डेेंजर जोन बनकर रह गया है।

सिंहस्थ से पहले हुआ था उदघाटन
सुपर कॉरिडोर प्रदेश का सबसे बड़ा कॉरिडोर हैं। यह आठ लेन वाला रेलवे ओव्हर ब्रिज जो बना है वह प्रदेश में कही भी नहीं हैं यह कारण है कि इसे प्रदेश का सबसे चौड़ा और बड़ा आरओबी माना जाता है। सिंहस्थ से पूर्व इसका उदघाटन मुख्यमंत्री ने किया था। दूसरे प्रदेशों से आने वाले वाहनों को शहर में प्रवेश नहीं करना पड़े इसलिए इसका निर्माण सिंहस्थ से पहले किया गया था।
शहर में कहीं भी नहीं हैं जीरो टॉलरेंस
प्रदेश में सबसे ज्यादा संख्या वाला शहर मेें एक भी जगह ऐसी नहीं हैं जहां जीरो टॉलरेंस हो। हालांकि यातायात पुलिस ने ऐसे बहुत सी जगहों पर प्रयोग किए मगर एक भी जगह अमल में नहीं लाया गया। जिससे शहर में अनियंत्रित वाहन चालकों पर अंकुश लगाया जा सके। कुछ साल पहले रीलग तिराहे को भी जीरो टॉलरेंस जोन बनाने के लिए प्रति शनिवार-रविवार को यातायात पुलिस द्वारा संघन चौकिंग अभियान चलाकर जीरो टॉलरेंस बनाने की कवायद की गई थी, मगर अधिकारियों के जाने के बाद आने वाले दूसरे अधिकारियों ने इस और कोई पहल ही नहीं की जिससे पूरे शहर में एक भी जगह ऐसी नहीं हैं जहां जीरो टॉलरेंस जोन अस्तित्व में आ सकें।

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