शहर में 8 हजार से ज्यादा शोरुम और बड़ी दुकानों पर लगे टू-लेट के बोर्ड

किराएदार-दुकानमालिक दोनों में तीसरी लहर का भय, आधे किराये पर भी नहीं ले रहे दुकान

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)।
दो साल से कोरोना महामारी के कारण लग रहे लॉकडाउन और बढ़ती महंगाई के कारण बाजार में कई क्षेत्रों में मांग समाप्त हो गई है। इसका असर शहर में खड़ी बड़ी बड़ी दुकानों पर भी दिखाई दे रहा है। जिन बाजारों में किसी जमाने में पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी उन बाजारों में दुकानों पर किराये पर देने और बेचने के बोर्ड लग गये हैं। तमाम कोशिश के बाद आधे किराये पर भी लोग यहां पर कामकाज शुरु करना नहीं चाहते हैं। इसके दो कारण है पहला तीसरी लहर को लेकर बना हुआ अंदेशा दूसरा लोगों के बाजार में पैसा खर्च करने की क्षमता बेहद कम होना।
प्रदेश की औद्योगिक नगरी की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। खासकर होटल और कपड़ों के कारोबार पर सबसे ज्यादा असर दिखाई दिया है। कई बड़े शोरुम जिनका किराया ७५ हजार से डेढ़ लाख रुपए तक था वे अब खाली हो चुके हैं। शहर में दो हजार से ज्यादा रेस्टोरेंट और होटलें अपना कामकाज पूरी तरह समेट चुकी हैं। शहर के प्रमुख बाजारों में 5 हजार से ज्यादा शोरूम और दुकानों पर टू-लेट के बोर्ड लग चुके हैं। खाली पड़े इन शोरूम और दुकानों के लिए न तो कोई किराएदार मिल रहा हैं और न ही खरीददार। व्यापारी वर्ग और ग्राहकों में कोरोना की तीसरी लहर का डर होने से हर जगह ग्राहकी कम होती जा रही हैं। ऐसे में छोटे-बड़े व्यापारियों को मुख्य बाजारों में किराए पर दुकान चलाना फायदे का सौदा नजर नहीं आया, उन्होंने दुकानें खाली कर दीं। वहीं जो शोरूम व बढ़ी दुकानें खुद मालिक चला रहे थे उन्होंने भी टू-लेट के बोर्ड लगा दिए। दैनिक दोपहर की टीम ने शहर के दो दर्जन से ज्यादा बाजारों का दौरा किया तो यहां यह पाया गया कि इन बाजारों में 5 हजार से ज्यादा दुकानें या तो किराए पर उपलब्ध या बिकने को तैयार हैं, मगर इन्हें न तो खरीददार मिल रहे हैं और न ही किराएदार। यही कारण हैं कि जो दुकानें और शोरूम पहले 5 हजार से 60 हजार रूपए तक किराए से लिए जाते थे अब वही दुकानें और शोरूम 2 हजार से 25 हजार प्रतिमाह आसानी से बाजारों में उपलब्ध हैं। ऐसे ही हालात बड़े मॉल में स्थित दुकानों और शोरूम के भी हैं यहां पहले दुकानें और शोरूम लेने के लिए लाखों रूपए पगड़ी भी देना पड़ती थी, अब बगैर पगड़ी के आसानी से उपलब्ध हो रही है। बढ़ती मंहगाई के चलते ऐसा लगता हैं जैसे ज्यादातर व्यापारियों ने इनसे मुंह मोड़ लिया है। इसके अलावा कोचिंग संस्थानों के बंद हो जाने के कारण बड़ी तादाद में होस्टल खाली हो चुके हैं। इनका रखरखाव अब मालिकों को भारी पड़ रहा है। कई ने इसमे गेस्ट हाउस बना दिये हैं। पचास हजार से ज्यादा ऐसे कमरे भी खाली पड़े हुए हैं जहां कभी छात्र पढ़ने के लिए रहा करते थे।
लगातार दो वर्षों से लॉकडाउन की मार झेल रहे शहर के प्रमुख बाजारों जैसे विजय नगर, पलासिया, छप्पन बाजार, गीताभवन, भंवरकुआ, टॉवर चौराहा, सिंधी कॉलोनी, कालानी नगर के साथ ही श्रमिक क्षेत्र जैसे प्रमुख बाजार की 5 हजार से ज्यादा दुकानों पर टू-लेट के बोर्ड लगे देखे जा रहे हैं। लॉक डाउन के बाद खुले बाजारों में कोरोना के भय से ग्राहक अब भी जाने से बच रहे हैं। ज्यादातर लोगों की नौकरी नहीं रही, मंहगाई भी दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं ऐसे में शोरूम और दुकानों पर ग्राहकी न के बराबर होती चली गई। प्रमुख बाजारों मेें अब पहले जैसे ग्राहकी नहीं होने से शहर के व्यापारियों ने दुकानों पर ताला लगाना ही उचित समझा। क्योंकि दुकानदारों के खर्च तो यथावत ही बने हुए हैं, जैसे बिजली का बिल, दुकान-शोरूम का किराया, कर्मचारियों की सैलरी, ऐसे में व्यापारी अपनी दुकान और शोरूम पर ताला लगाने को मजबूर हो गए है। खाने-पीने के शौकिन लोग अब भी रेस्टोरंट व दुकानों पर कम ही देखे जा रहे हैं। बढ़ती मंहगाई ने लोगों के खर्च पर अंकुश लगा दिया है। अगर हालात दिसम्बर तक ठीक नहीं हुए तो शहर का ज्यादातर व्यापार चौपट हो जाएगा। वर्तमान में शहर के लगभग सभी बाजार खुल चुके हैं मगर दुकानदारों की परेशानी कम ग्राहकी ने बढ़ा दी है। वैज्ञानिक और डॉक्टरों द्वारा लगाए जा रहे पूर्वानुमान अगर सही साबित होता हैं और शहर में कोरोना की तीसरी लहर आती हैं तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे। क्योंकि व्यापार जगह कोरोना की मार से संभला ही थी कि बढ़ते पेट्रोल-डीजल के दामों ने व्यापारियों की कमर ही तोड़ कर रख दी। ऐसे में तीसरी लहर की आहट से व्यापारियों में भय का माहोल बना हुआ है। शहर के कुछ व्यापारियों का मानना हैं कि नौकरीपेशा लोगों में भी कोरोना की तीसरी लहर का डर बना हुआ हैं क्योंकि पहली और दूसरी लहर में जो नोकरियां चली गई थी वह लोग अभी भी नौकरी की तलाश में यहां-वहां भटक रहे हैं। जब तक लोगों की बेरोजगारी खत्म नहीं होती तब तक व्यापार-व्यावसाय मंदा ही चलता रहेंगा।
प्रायवेट होस्टलों पर भी लगे हैं ताले
शैक्षणिक हब बन चुके शहर के कई क्षेत्रों में छात्र-छात्राओं के लिए बनाए गए होस्टर भी खाली ही पड़े हुए हैं। अन्य शहरों और कस्बों से आने वाले विद्यार्थियों ने होस्टल में रहना शुरू नही किया है। जिससे शहर के 85 प्रतिशत प्रायवेट होस्टल खाली ही पड़े हुए है। स्कूल-कॉलेजों में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति भी पूरी नहीं है, यही कारण हैं कि शहर का ज्यादातर प्रायवेट होस्टल खाली पड़े हुए है।
तीन लाख रोजगार भी चले गये
इन दुकानों और होस्टलों में मजदूर वर्ग की हैसियत से काम करने वाले कई लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं। अब इन्हें नई नौकरी की तलाश है। परंतु बाजार में नौकरियां नहीं है। जो लोग छह हजार रुपए महीने में आधे घंटे काम करते थे अब वे चार हजार रुपए महीने में भी काम करने को तैयार है। दैनिक रोजनदारी की मजदूरी में भी अच्छी खासी कमी आई है।

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