खंडहर होने लगी 175 साल पुरानी दोस्ती की ईमारत

तुकोजीराव द्वितीय ने 1846 में बनवाई थी रामपुरा कोठी, अब अहिल्याबाई स्मारक को देने में भी नहीं बन रही सहमति

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)।
इंदौर के महाराजा तुकोजीराव द्वितिय द्वारा बनाई गई दोस्ती की यह इमारत पांच साल से लावारिस पड़ी अपनी बद्नसीबी पर आंसु बहा रही है। अपने जीवन के 175 बसंत देख चुकी यह इमारत अब खंडर में तब्दील होने लगी है। महाराज ने इसे अपने घनिष्ट मित्र रामपुरा के रूहेला नवाब को ठहरने के लिए बनवाई थी, तभी से इसका नाम रामपुरा कोठी पड़ गया था। इन दिनों लावारिस पड़ी कोठी को अहिल्याबाई के स्मारक के रुप में भी दिये जाने पर प्रस्ताव मांगा गया था अभी तक जिला प्रशासन की ओर से इस मामले में प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।

शहर में लगभग 120 ऐतिहासिक धरोहर हैं, वर्तमान में हर धरोहर प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रही है। इन धरोहरों के जीर्णोद्धार नाम पर सरकार करोड़ों रूपए का बजट पास करती हैं, बावजूद इसके इसकी हालात नही सुधर पाती। लालबाग से पहले अस्तित्व में आई यह रूहेला नवाब रात्रि विश्राम के उपयोग हेतु बनाई गई रामपुरा कोठी के हालात इन दिनों बद्तर हो रहे है। 1972 के आस-पास होलकर स्टेट का निजी भवन यहां हुआ करता था। इसके बाद इस कोठी की देख-रेख का जिम्मा लोक निर्माण विभाग को दिया गया था। पीडब्ल्यूडी ने कुछ दिनों बाद इस इमारत को आरटीओ कार्यालय चलाने के लिए परिवहन विभाग को सौंप दी। 2 हॉल और 21 कमरों की इस कोठी में परिवहन विभाग ने अपनी जरुरतों को ध्यान में रखते हुए यहां कई सारे परिवर्तन तक कर दिए। इतना ही नहीं परिवहन विभाग ने इसके तलघर को दीवार उठाकर बंद तक कर दी। तलघर के एक हिस्सें में आरटीओ से संबंधित कागजात रखे जाने लगे थे। मगर परिवहन विभाग ने इसके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जिससे इस इमारत के तलघर में पानी भरने लगा। हर साल बारिश के दिनों में यहां पानी भराने से इस इमारत को काफी नुकसान हो चुका है।
महाराजा तुकोजीराव द्वितीय से मिलने नीमच के रूहेला नवाब अक्सर इंदौर आया करते थे। दोनों मित्रों की आदतें एक दूसरे से बहुत मिलती थी, जिससे दोनों में घनिष्ठ दोस्ती हो गई थी। दोनों मित्रों को शिकार खेलने का बहुत शौक था। रालामंडल वन क्षेत्र इनका मनपसंद वन होने से इन्होंने इसे ही शिकारगाह के रूप में चुना था। रूहेला नवाब जब भी शिकार खेलने इंदौर आते थे तो उन्हें यहां रात रुकने की कोई व्यवस्था नहीं थी। रूहेला नवाब को ठहराने के लिए ही महाराजा तुकोजीराव द्वितिय ने 1840 में इस कोठी का निर्माण शुरु करवा दिया था, 1846 में यह कोठी पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई थी। इसके बाद रूहेला नवाब जब भी इंदौर आते थे वह यहीं पर ठहरते थे। इसके बाद महाराजा ने इसके कोठी के पास खुद को रहने के लिए अपना महल बनवाया जिसे आज भी लालबाग के नाम से जाना जाता है।

योजनाओं में उलझ कर रह गई कोठी
रामपुरा कोठी से आरटीओ ऑफिस हट जाने के बाद से ही करोड़ों रूपए का बजट रख कर कई योजनाएं बनने लगी। मगर धरातल पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य दिखाई नहीं देता। कोरोना काल के पूर्व ही आर्ट गैलरी और कल्चरल सेंटर के लिए इस कोठी का चुनाव किया गया था। यहां रजवाड़ी व्यंजनों का एक रेस्तरां शुरू करने के लिए 5 करोड़ का बजट पास कर इसे दुरूस्त करने की योजना बनाई गई थी। शासन द्वारा बगैर प्लानिंग के बनाई गई योजनाओं में उलझ कर रह गई रामपुरा कोठी।

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