क्लर्क से पिंटू छाबड़ा ने सांठगांठ कर 5 भूखंडों की एक शर्त रजिस्ट्री में गायब करवा दी थी

ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी मॉल -जांच में अधिकारियों को क्लीनचीट, प्राधिकरण ही उलझ गया

इंदौर। एबी रोड पर बने ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी मॉल की अनियमितताओं को लेकर प्राधिकरण द्वारा दस्तावेजों की जांच में तत्कालीन पदस्थ अधिकारी पहली नजर में दोषी नहीं मिले हैं। ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी मॉल के मालिक पिंटू छाबड़ा द्वारा पांच रजिस्ट्रियों में क्लर्क से सांठगांठ कर एक शर्त को विलोपित करवाया गया था। दूसरी ओर यह मामला अदालत में भी कई जगहों पर तकनीकी खामियों के कारण खड़ा नहीं हो पाएगा। स्वयं प्राधिकरण ने यहां पर प्लाटों के संयुक्तिकरण को एनओसी दी है और उसी आधार पर नगर नियोजन विभाग ने नक्शा पास किया था। कुल मिलाकर यह मामला प्राधिकरण के लिए भी कुछ भी हासिल करने लायक नहीं रह गया है।
1980 के दशक में चाय व्यापारी और किराना व्यापारियों को यहां पर भूखंड आवंटित किए गए थे। उस समय दिए गए भूखंडों को लेकर साधारण व्यावसायिक प्लाट की रजिस्ट्रियां की गई थीं, जिनमें किसी भी प्रकार की शर्त नहीं थी, परंतु जिन लोगों को भूखंड दिए जा रहे थे, उन्होंने अपना कारोबार पुराने स्थान पर जब बंद नहीं किया तो प्राधिकरण ने 2005 में लीज डीड में तेईसवें नंबर पर यह शर्त और जोड़ दी कि प्लाट खरीदी की रजिस्ट्री के बाद शहर से व्यवसाय को हटाना होगा। कानूनन प्राधिकरण को यह अधिकार था ही नहीं। प्राधिकरण को इस शर्त को जोड़ने से पूर्व आपत्तियां मंगानी थीं। यदि कोई भी व्यापारी आपत्तियों को लेकर कोर्ट जाता तो यह शर्त उसी समय खारिज हो जाती। मॉल के मालिक पिंटू छाबड़ा ने मॉल में पांच प्लॉटों को खरीदने के बाद रजिस्ट्री करवाई थी। पिंटू छाबड़ा ने प्राधिकरण के क्लर्क की मिलीभगत से तेईस नंबर की इस शर्त को रजिस्ट्री से विलोपित करवा दिया कि उन्हें पुराना कारोबार पूर्व स्थान पर बंद करना होगा। उस समय प्राधिकरण में सम्पदा अधिकारी राख्या और रघुवंशी पदस्थ थे। रजिस्ट्रियां देखने और जांचने का काम क्लर्क का होता है। अधिकारी को केवल हर पन्ने पर हस्ताक्षर ही करने होते हैं। एक दिन में तीस से अधिक रजिस्ट्रियों पर हस्ताक्षर करने के पूर्व दस्तावेजों की जांच क्लर्क ने ही की थी। हालांकि इस पूरे मामले की जांच नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्रसिंह द्वारा एक शिकायती पत्र के आधार पर शुरू की गई थी, परंतु इस पूरे मामले में अब पिंटू छाबड़ा पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह मामला प्राधिकरण स्तर पर ही गलत पाया गया है। दूसरी ओर शासन के विभागों की विधिगत अनुमति के बाद भी संयुक्तिकरण हो चुका है। जिन प्लाटों का संयुक्तिकरण किया गया है, उन्होंने कामकाज लंबे समय से बंद कर दिया है। प्राधिकरण ने यदि कोई कदम उठाया भी तो इसे न्यायालय में लंबे समय तक खिंचने के बाद भी प्राधिकरण के पक्ष में परिणाम नहीं आएगा।

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