1.31 लाख करोड़ कर्ज था, 22 लाख करोड़ जनता की जेब से निकल गए
पेट्रोल-डीजल में लग रही आग का कारण मनमोहनसिंह ही हैं
नई दिल्ली (ब्यूरो)। क्या वाकई पेट्रोल-डीजल की बढ़ रही कीमतों का श्रेय मनमोहनसिंह सरकार को है। मनमोहनसिंह सरकार कितना कर्ज पेट्रोल-डीजल के नाम पर ले चुकी कि उसका चुकारा नई सरकार से नहीं हो पा रहा है। इन सभी तथ्यों को लेकर बीबीसी ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आंकड़ों की कौन-सी जादूगरी कर रही है। सरकार टैक्स कम करने के लिए तैयार नहीं है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें अब अस्सी डॉलर प्रति बैरल पहुंचने को लगभग तैयार हैं, यानी आम लोगों को एक सौ बीस रुपए लीटर पेट्रोल खरीदना पड़ा तो आश्चर्य नहीं होगा, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सात साल के कार्यकाल में पेट्रोल-डीजल से टैक्स के रूप में 22 लाख करोड़ रुपया अभी तक मिल चुका है। दूसरी ओर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के कार्यकाल में पेट्रोल-डीजल को लेकर एक लाख दस हजार करोड़ का ही कर्ज है। इस कर्ज को नई सरकार ने चुकाया नहीं है, जबकि अरबों रुपया लोगों की जेब से जा चुका है।
कोरोना महामारी में पेट्रोल-डीजल की कीमतें आम आदमी के लिए महामारी से भी बड़ी मुसीबत बन गई हैं। महामारी से तो मुक्त होने के आसार दिख रहे हैं, पर अब नई कीमतें पीछे जाने को तैयार नहीं होंगी।
आइए, समझें ऑइल बांड के कर्ज को
केंद्र सरकार तेल, उवर्रक और भारतीय खाद्य निगम में राहत देने के लिए सब्सिडी के रूप में सहायता देती है। किसानों को खाद की मार न पड़े, इसके लिए इसी प्रकार से सब्सिडी जारी की जाती है। इसके लिए केंद्र सरकार तत्काल स्वयं पर बोझ न पड़े, लंबी अवधि के बांड जारी करती है, जिससे केंद्र सरकार बैंक और तेल कंपनियां तीनों को ही इसका लाभ मिलता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि तेल कंपनियों के भुगतान से राजकोषीय घाटा नहीं बढ़ता और आम आदमी को भी महंगे तेल से राहत रहती है। 2014 में डीजल पर से भी सरकारी नियंत्रण मुक्त होने के बाद अब हर दिन भाव तय होते हैं।
दस माह में ही तीन लाख करोड़ वसूले
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पेट्रोल से 29298 हजार करोड़ रुपए टैक्स के रूप में मिले थे, जबकि डीजल से 42881 हजार करोड़ रुपए आय हुई थी, जबकि 2020-21 के पहले दस माह में ही सरकार ने आम आदमी की जेब से टैक्स के रूप में 2.94 लाख करोड़ रुपए वसूल कर लिए, जबकि सरकार ने मनमोहनसिंह कार्यकाल के एक लाख इकतीस हजार करोड़ के कर्ज में से मात्र 3500 करोड़ ही चुकाए हैं। इस वर्ष दस हजार करोड़ रुपए की किश्त दी जानी है, वह भी अभी तक नहीं दी गई है।
यदि हुई भी तो भी भविष्य में पेट्रोल-डीजल की कीमतें सौ रुपए के पार बनी रहेंगी। मई से जून तक बत्तीस बार सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की है। यह अब तक सात सौ प्रतिशत की टैक्स पर वृद्धि है। जिस ऑइल बांड को लेकर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, मनमोहनसिंह सरकार को कोस रहे हैं, यह ऑइल बांड खरीदने का क्रम अटलबिहारी वाजपेयी के छह साल के कार्यकाल में भी जारी रहा था। पिछली सरकारें कीमतों को लेकर आम लोगों पर यह बोझ डालने के लिए तैयार नहीं थीं, क्योंकि देश की नब्बे प्रतिशत आबादी कहीं न कहीं इनकी कीमतों से प्रभावित होती हैं। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में खरीदे गए ऑइल बांड का भुगतान 2026 तक किया जाना है। तब तक सरकार एक लाख दस हजार करोड़ के ऑइल बांड कर्ज के बदले पच्चीस लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का टैक्स उठा चुकी होगी।
पेट्रोल 120 तक जाएगा
कच्चे तेल की कीमतों में अब कमी के आसार नहीं हैं। पूरे विश्व में अनलॉक होने के बाद कच्चे तेल की मांग बढ़ गई है। यह अस्सी डॉलर प्रति बैरल के आसपास इसी वर्ष पहुंचेगी। इसका असर यह होगा कि पेट्रोल 120 रुपए लीटर से कम नहीं मिलेगा। यदि सरकार ने टैक्स कम नहीं किए तो डीजल भी 103 रुपए के आसपास झूलेगा।