पेट्रोल पर 700 प्रतिशत टैक्स बढ़ा, आम आदमी पर 60 से 75 प्रतिशत हुई अब टैक्स की मार

आपको याद है कालाधन, पेट्रोल, टैक्स की मार से बचाने के लिए बनाई थी यह सरकार

नई दिल्ली (दोपहर डेस्क)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पेट्रोल-डीजल सस्ते से लेकर काले धन को भारत लाकर बांटने के आह्वान पर बनी थी। सात साल में पेट्रोल-डीजल सात सौ प्रतिशत टैक्स बढ़ा दिया गया तो वहीं आम आदमी पर टैक्स का बोझ अब साठ प्रतिशत से बढ़कर 77 प्रतिशत हो गया है। किसी भी व्यक्ति की आय नहीं बढ़ी, बल्कि उसके खर्च और टैक्स की मार दोगुना हो गई। जीएसटी के बाद टैक्स में राहत भी नहीं मिली और उसके बाद सेस लगाकर पिछले लिए जा रहे टैक्स से भी ज्यादा टैक्स वसूली शुरू हो गई। देश की अस्सी फीसदी आबादी केवल अब बीस हजार रुपए से भी कम प्रतिमाह कमा रही है, जबकि भारत अब प्रति व्यक्ति आय के मामले में विश्व में 122वें नंबर पर पहुंच गया है। महंगाई, महामंदी, महामारी की मार से दस करोड़ मध्यमवर्गीय परिवार गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं, वहीं कार्पोरेट घरानों को मिली टैक्स की छूट ने उन्हें अरबपति बना दिया है। इस खबर में हम आपको टैक्स का पूरा मकड़जाल बता रहे हैं।
80 प्रतिशत आबादी 20 हजार से कम कमाने वालों में शामिल, प्रति व्यक्ति आय में भारत 122 वें नंबर पर पहुंचा, 10 करोड़ मध्यमवर्गीय गरीब परिवार बने कारपोरेट घरानों के खजाने टैक्स छूट से झमाझम हो गए केंद्र सरकार द्वारा इस कदर टैक्स की भरमार पर और बेतुके निर्णय लेकर आम आदमी को टैक्स के भारी बोझ में उलझा दिया है। आप कितना टैक्स दे रहे हैं, यदि इसकी गणना आप करेंगे तो आपके नीचे से जमीन खिसक जाएगी। दो रुपए के सामान पर भी टैक्स लिया जा रहा है। सामान खरीदने में भिखारी को भी टैक्स भरना पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजल जहां देश को भीषण महंगाई का रास्ता दिखा रहा है, इसकी बढ़ती कीमतों का असर देश के नब्बे प्रतिशत लोगों पर पड़ रहा है। सरकार ने जो ख्वाब दिखाए थे, वह पूरी तरह सात सालों में तार-तार हो गए हैं। देश की आबादी का अस्सी प्रतिशत हिस्सा ऐसा है, जिसकी आय बीस हजार से भी कम रह गई है। इन सभी को सरकार ने आयकर के दायरे से पहले ही बाहर कर रखा है, यानी दो लाख रुपए से ऊपर कमाने वाले ही टैक्स भरेंगे। यह सभी लोग इतना नहीं कमाते कि टैक्स देने लायक रहें। जब दूसरे देशों में आम आदमी की आय बचाने के लिए सरकारें अपने खजाने खोल रही थीं, उस वक्त भी भारत में आम आदमी पर टैक्स थोपा जा रहा था और इसी कारण दुनिया के देशों की अपेक्षा भारत में गरीब और गरीब हो गया। कारपोरेट घरानों पर टैक्स घटकर 23 प्रतिशत, आम आदमी पर बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया है।
रोजगार के अवसर अब समाप्त
एक ओर जहां सरकार की अर्थव्यवस्था शून्य प्रतिशत रहने के संकेत एजेंसियां दे रही हैं, वहीं यह भी तय है कि आने वाले पांच सालों में नए युवाओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं के बराबर रहेंगे। इस समय भारत में पंद्रह करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों का आंकड़ा है, जो आजादी के बाद सबसे ज्यादा है।
बोझ आम परिवारों पर
सात साल पहले तक परिवारों पर टैक्स का बोझ साठ प्रतिशत था, जो इन सात सालों में बढ़कर पचहत्तर प्रतिशत हो गया है। इसमें आयकर, जीएसटी शामिल है। राज्यों पर टैक्स अलग हैं। पेट्रोल-डीजल पर सात साल में सात सौ फीसदी टैक्स बढ़ाया गया है। जीएसटी के बाद टैक्स तो बढ़ा ही, जो पुराने टैक्स से भी ज्यादा हो गया है। सरकार जीएसटी का घाटा पूरा करने के लिए टैक्स पर टैक्स (सेस) लगा रही है।
कार्पोरेट घरानों का खेल
सरकार द्वारा कार्पोरेट घरानों को दी गई छूट की मार सीधे आम आदमी पर ही पड़ी है। केंद्र के पास आने वाले सौ रुपए में से चालीस रुपए कंपनियों से टैक्स के रूप में और साठ रुपए आम लोगों से टैक्स के रूप में आ रहे हैं। कंपनियां भी इसमें से पच्चीस प्रतिशत अपने माल पर टैक्स लगाकर आम लोगों पर ही थोप रही हैं, यानी पचहत्तर प्रतिशत टैक्स दे रहे हैं देश के आम लोग, यह जानकारी सरकारी एजेंसी इंडिया रेटिंग द्वारा दी गई है।
कैसे मिलेगी कारोबार को रफ्तार
सरकार द्वारा पेट्रोल-डीजल से लेकर जीएसटी के दायरे में लाए गए सामानों के बाद आम आदमी के खरीदने की क्षमता 35 प्रतिशत कम हो चुकी है। सरकार ने समय रहते टैक्स का बोझ कम नहीं किया तो इसका असर कई क्षेत्रों में दिखाई देगा। महामंदी के करीब देश खड़ा है। सरकार को सबसे पहले आम आदमी के जिंदगी जीने की लागत को कम करना होगा। दुनिया के देशों में इसी दिशा में कदम बढ़ाए हैं, भारत को छोड़कर।
सबसे ज्यादा टैक्स भारत में
जीएसटी सहित अन्य टैक्स बता रहे हैं कि भारत में खर्च पर सबसे ज्यादा टैक्स लग रहा है। पिछले दो साल महामारी के कारण टैक्स के आंकड़े नहीं लिए, पर 2019 में सरकार के पास पैंसठ प्रतिशत टैक्स गरीब से गरीब लोगों से ही आया। आप जो भी खरीद रहे हैं, हर सामान पर टैक्स है। अब कारपोरेट टैक्स और गरीबों पर लगने वाले टैक्स बिल्कुल बराबरी पर आ गए हैं। कारपोरेट 46 से घटकर 23 प्रतिशत पर आ गए हैं।

 

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