Sulemani-खत्म होता एजाज….बदलता स्टेटस, रूवाब या डर…गति या दुर्गति
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खत्म होता एजाज
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के मुखिया एजाज खान बीजेपी मे अब कुछ ख़ास अहमियत नहीं रखते एक समय था जब मोर्चा के नगर अध्यक्ष पूरे अल्पसंख्यक समाज को साध कर चलते थे, लेकिन अब तो बेचारे नगर खलीफा खुद हि सधे सधाय चलते हे,इसी के साथ अपनी किसी से दोस्ती नहु किसी से बेर की तर्ज पर काम चलाते हे, तो दुसरो की नाव मे छेद करने की क्या जरूरत । अब बेचारे प्रदेश अध्यक्ष तो सिर्फ नाम के ही बचे हे, आपने कर्यकाल मे वे सिर्फ सात दिनों का अल्टीमेटम ही दे सकते हे, अब साहब उन अल्टीमेटम की भोंगली कहा घुसी ये तो साहब ही बता सकते हे।लेकिन इस सब से एक बाद तो साबित होती हे की बीजेपी मे अल्पसंख्यक मोर्चे का एजाज खतरे मे है।
बदलता स्टेटस, रूवाब या डर
ज़ब से शहर मे वक्फ बोर्ड की बड़ी कार्रवाही हुई हे तब से बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के एक बड़े नेताजी सोशल मिडिया पर अचानक सक्रिय हो चले हे, कभी दादा दयालु को घर पर बुलाकर जन्मदिन मानते हे और फोटू शोटू डालते हे, तो कभी बाबा कृपालु के साथ नजर आते हे, हाल ही मे तो शिवराज मामा से भी नजदीकियां दिखा रहे हे, अब साहब हर रोज बड़े बड़े लोगो के साथ स्टेटस लगाना क्र,्य बैनर के नेताजी का रूवाब हे या डर ये तो वो ही जाने लेकिन कही गलती से सनवर पटेल का डंडा इधर घुस गया तो समस्या हो जयगी, सोशल मिडिया से ही सही सेफ्टी की कोशिश तो जरूरी हे, वैसे जिन पर कार्रवाही हो चुकी हे वो भी साहब के नाम राशि हे।
गति या दुर्गति
राजनीति पहले सम्मान के लिए हुआ करती थीं मानप्रतिष्ठा के लिए, हूवा करती थी अवाम के लिए नेता किसी भी हद तक जाते थे उनकी लड़ाई लड़ते थे इसके बदले समाज पलक बिछा कर उनकी इज़्ज़त किया करती थीं ये नेता हर प्रोग्राम के मेहमान ए खास होने के साथ अल्पसंख्यक समाज के फैसले किया करते थे पैसे कमाने की अंधी दौड़ ने सियासत को आमदनी का ज़रिया ही बना लिया हर नेता दूसरे नेता से ज़्यादा माल कमाना चाहता हैं ये अवाम को खुली आंखों से दिख रहा है इस लिए अवाम ने भी इनसे मुंह फेर लिया है अल्पसंख्यक नेताओं से चाहे वो किसी भी दल का हो, इक्का दुक्का को छोड़ कौम के हर मसले पर कुछ रहबर सिर्फ शोशल मिडिया पर पोस्ट डाल कर अपना फर्ज़़ अदा कर लेते हैं। और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी भूल रहे हे