यहां राम राजनीति के लिए नहीं उनके संस्कारों के लिए गाये जाते हैं….

(बंशी ललवानी मोबा. ९८२६०३३०२९)
इंदौर। पांच दशकों से शहर में अलग अलग स्थानों पर रामायण पाठ से लेकर सुंदरकांड के पाठ करवाने को लेकर प्रारंभ किए गए रामायण मंडलों का परचम आज भी लहरा रहा है। किसी जमाने में प्रारंभिक स्थिति में जहां केवल ढोल और मंजिरों के आधार पर रामायण पाठ हुआ करते थे वह समय के साथ अब अत्याधुनिक वाद्य यंत्रों की धुनों के साथ प्रारंभ हो गए हैं। एक प्रारंभिक अनुमान में हर दिन शहर में तीन सौ से अधिक परिवारों ने रामायण पाठ या सुंदरकांड का आयोजन हो रहा है। इनमे कहीं न कहीं रामायण मंडलों की भूमिका अवश्य रहती है। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि मध्यप्रदेश शासन के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी वर्षों से इन्हीं रामायण मंडलों के सदस्य रहे और देर रात तक वे हमेशा डटे रहते थे। उनके भजनों को लेकर भी लगातार मांग आयोजनों में होती रहती थी।


१९७२ में मध्यप्रदेश पुलिस में कार्यरत पुलिसकर्मियों ने शहर में धार्मिक आयोजनों और रामायण के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के साथ ही श्रीराम को आराध्य मानकर उनके लिए भजन गाने के साथ रामायण मंडलों के पाठ भी प्रारंभ किए थे। अधिकांश पुलिसकर्मी और पुलिस अधिकारी भी इन आयोजनों में अवश्य पहुंचते थे। समय निकालना कठिन होता था फिर भी वे यहां अपनी उपस्थिति छोटे पुलिसकर्मियों के बीच जरुर लगाते थे इससे अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के बीच सौहार्द का वातावरण भी बनता था। रामायण मंडल की स्थापना ने प्रारंभिक स्थिति में स्व. शिवशंकर श्रोत्रिय के अलावा स्व. राजगुरु गेंदालाल पाल, स्व. बालमुकुंद तोमर, स्व. दयाशंकर रावत ने इसे प्रारंभ किया था। प्रांरभिक दौर में उनके साथ युवा पुलिसकर्मियों ने कुंजनसिंह बुंदेला, सुरेंद्रसिंह भदौरिया, केशवराव खेरकर, लक्ष्मणसिंह राठौर थे जिन्होंने इस रामायण मंडलों को और तेजी से फैलाने का काम करते हुए पंद्रह से अधिक रामायण मंडलों का गठन अलग अलग कर दिया। इससे रामायण मंडलों की संख्या बढ़ने के साथ इनके पाठ होने की संख्या भी तेजी से बढ़ती गई। इन सभी रामायण मंडलों में सबसे पुरातन चौथी पल्टन पुलिस लाइन रामायण मंडल था जो आज भी ६० साल पूरे कर चुका है। दूसरी ओर इन रामायण मंडलों में अब तीसरी पीढ़ी भी मोर्चा संभाल चुकी है। इसमे शरद राठौर से लेकर प्रमोद दुबे, शैलेंद्र बुंदेला, देवेंद्रसिंह राठौर, अभिषेक सिंह राठौर, दीपेंद्रसिंह राठौर, मनोज यादव, राजेश चौहान (कूका), सतीश नायडू, लक्ष्मण जाधव, मुकेश ठोकर प्रमुख है। इस मामले में रामायण मंडलों के वरिष्ठ साथी कुंजनसिंह बुंदेला और विष्णु शर्मा ने बताया कि अब नई तकनीक परिवर्तन के साथ रामायण मंडलों की प्रस्तुति में भी बहुत फर्क आ गया है अब लय और ताल का पूरा ध्यान रखते हुए इसे गीत और संगीत की तर्ज पर गाया जाता है। समय के साथ धीरे धीरे अलग अलग क्षेत्रों में भी रामायण मंडल की शाखाएँ प्रारंभ हुई और जब अयोध्या में राममंदिर को लेकर चले आंदोलन की अलख देशभर में जगी उस दौरान रामायण मंडलों की मांग सबसे ज्यादा होने लगी थी। इसके उपरांत गाडराखेड़ी में जयराम चौहान, कमलसिंह शेरा, इंद्रसिंह चंदेल, ओमप्रकाश ने रामायण मंडल गठित किया जो अभी गेंदालाल चौधरी के नेतृत्व में चल रहा है। वहीं मल्हारगंज में कौशल मास्टर, किशोरीलाल गेहलोत, गुलाब व्यास, सत्यनारायण शर्मा ने रामायण मंडल प्रारंभ कर दिया। इस बीच महिलाओं ने भी रामायण मंडल का हाथ थामा और फिर लय और ताल और बेहतर होने लगी। आज रामायण मंडल वाद्यों से लेकर अपने पास शानदार प्रस्तुति करने वाले गायकों से समृद्ध हो चुका है। इन रामायण मंडलों को पाटनीपुरा के आचार्य गंगाप्रसाद शुक्ल का योगदान हमेशा मिलता रहा। पाटनीपुरा क्षेत्र में ११ से अधिक रामायण यज्ञ उनके द्वारा ही किए गए। अब रामायण पाठ या सुंदरकांड शहर की परंपरा में शामिल हो गये हैं। इन्हीं रामायण मंडलों को देखते हुए कई अन्य लोग भी अपने स्तर पर रामायण पाठ शुरु कर चुके हैं। वर्तमान में लगभग ८० सक्रिय रामायण मंडल मौजूद है। इनमें प्रमुख रुप से तुलसीकृत रामायण मंडल गाडराखेड़ी, महिला रामायण मंडल नंदानगर, चौथी पल्टन रामायण मंडल, श्रीराम रामायण मंडल, दास बगीची, श्री रोकड़िया हनुमान मंडल, दूसरी पल्टन, एमटीएच दुर्गामाता रामायण मंडल, जय सियाराम रामायण मंडल, गांधीनगर रामायण मंडल (संचालक जुगलकिशोर शर्मा), मां भारती रामायण मंडल बड़ा बांगड़दा, परसेधीपुरा रामायण मंडल, रामकृष्ण रामायण मंडल नंदानगर, रामायण मंडल अरण्य नगर ७८, राजेंद्र नगर हनुमान मंदिर रामायण मंडल, देशबंधु रामयाण मंडल एवं इंदौर रामायण मंडल आदि।

 

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