10 साल बाद भी टल गए सहकारिता के चुनाव

हाई कोर्ट के आदेश के मद्देनजर सरकार ने फिर मांग लिया समय, अब लोकसभा निर्वाचन का बहाना

सहकारिता के चुनाव

इंदौर। 10 सालों से सहाकारी संस्थाओं के चुनाव नहीं हुए है। इसी के चलते हाईकोर्ट ने 8 जनवरी से इनकी चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे, किंतु सरकार ने एक बार फिर समय मांग लिया है। इसके चलते एक बार फिर इन संस्थाओं के चुनाव टलना तय है। इधर कई सहकारी संस्थाओं ने जहां अफसर प्रशासक बनकर बैठे है तो वहीं कई सहकारी बैंक अब बंद होने की कगार पर पहुंच गए है।

गौरतलब है कि पिछले लगभग 10 सालों से प्राथमिक साख सहकारी समितियों के चुनाव नहीं हुए है। इसके चलते चुनाव कराए जाने को लेकर हाईकोर्ट में 1 दर्जन से अधिक याचिकाए दायर की गई थी। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे, वे जल्द से जल्द सहकारिता चुनाव कराए। इसके लिए कोर्ट ने 8 जनवरी से चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे।

इसी बीच अब सरकार ने हाईकोर्ट से आग्राह किया है कि हम सहकारी समितियों का पुर्नगठन करने जा रहे है। अभी दो से तीन पंचायतों पर एक सहकारी साख समिति है और सरकारा हर पंचायत पर एक साख समिति गठित करने का प्लान है। उसके अलावा 1 महीने के मोहलत यह कर मानी गई है कि छह जनवरी से लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम शुरू हो गया है। बताया जाता है कि सर्वकार के इस जवाब के बाद सुनवाई फरवरी माह तक के लिए टाल दी गई है। इसके चलते अब ये तय हो गया है कि सहकारिता के चुनाव एक बार फिर टल गए है। क्योंकि फरवरी के अंत या मार्च में लोकसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लागू हो जाएगी।

थम गई आम आदमी की भागीदारी, प्रशासक बनकर बैठे है अफसर

महत्वपूर्ण तत्व यह है कि सहकारिता के चुनाव पिछले 10 सालों से अतित समय से नहीं हुए है। इस कारण सहकारिता आंदोलन में आम आदमी की भागीदारी थम गई है। सहकारी बैंकों में जहां चुने हुए जनप्रतिनिधि होने चाहिए वहां सरकारी अफसर प्रशासक बने हुए है। पिछले दिनों सरकार ने एक्ट में संशोधन कर आशासकीय व्यक्ति को भी प्रशासक बनाने का रास्ता खोल दिया है, जिसके चलते विधायक और सांसदो को भी इसमें शामिल किया गया है। सहकारिता एक्ट में साफ है कि 6 महीने से अधिक समय तक प्रशासक नहीं बैठ सकता है और जब तक नए वोट का गठन नहीं हो जाता तब तक पुराना बोर्ड प्रभावशाली रहेगा। किंतु अफसरों ने एक्ट में संशोधन करवाकर सहकारिता का पूरा नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया।

कई बैंक घाटे में, कुछ बंद होने की कगार पर

प्रदेश में सहकारिता आंदोलन की हालत खराब हो चुकी है। हालात कितने बदतर है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि मालवा-निमाड़ अंचल के कुछ बैंको को छोड़ दिया जाए तो विंध्य, महाकोशल, चंबल, बुंदेलखण्ड, अंचल के कई को ऑपरेटिव बैंको की हालत बेहद खराब है और वे कर्ज में डूबे हुए है, तो कुछ बैंक बंद होने की कगार पर है।

4600 पैक्स और अपेक्स बैंक अध्यक्ष का भी होना है चुनाव

प्रदेश में 4600 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां है इन समितियों में 11 संचालक चुने जाते है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष से लेकर बैंक प्रतिनिधि का भी चुनाव होना है। उसी प्रकार 38 बैंको समेत अपेक्स बैंक के अध्यक्ष का चुनाव भी अभी तक नहीं हुआ है। इसके चलते सहकारिता आंदोलन का अस्तित्व ही खतरे में नजर आ रहा है।

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