32 साल तक चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा संघर्ष हुकुमचंद मिल मजदूरों के नाम
5800 श्रमिकों ने लड़ी हक की लड़ाई, 2200 की हो गई मौत-60 ने की खुदकुशीे
इंदौर। लगभग 32 साल तक चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा संघर्ष हुकुमचंद मिल मजदूरों के नाम जीत के साथ दर्ज हो गया है। इस दौरान, जहां 5800 मजदूरों ने अपने खूने-पसीने की कमाई के पैसे पाने के लिए हक की लड़ाई लड़ी तो पैसा पाने की चाह लिए ही 2200 मजदूरों की मौत हो गई, जबकि 60 मजदूरों ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर खुदकुशी कर ली। लेबर कोर्ट से लगाकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गई इस लड़ाई में आखिरकार मजदूरों की जीत दर्ज हुई और उनके चेहरे पर पैसा मिलने की खुशी देखी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि 12 दिसंबर 1991 को जब हुकुमचंद मिल में मजदूर काम कर रहे थे, तभी मिल की बिजली गुल हो गई। बाद में पता चला कि बिजली कनेक्शन काट दिया गया है। इसके बाद मजदूरों में हड़कंप मच गया और फिर मिल में ताला लटक गया। सुंदरलाल पटवा सरकार के दौरान मिल बंद होने के बाद यह मामला दो लेबर कोर्ट में पहुंचा, तारीख पर तारीखें लगती रही। बावजूद इसके कोई फैसला नहीं हो सका। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, वहां पर भी तारीखों पर तारीखें लगती रहीेें और अंतत: मजदूरों का 32 साल का संघर्ष रंग लाया और कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार को मजदूरों की बकाया राशि दिए जाने के आदेश दिए।
पैसों की चाह लिए ही काल कवलित हो गए 2200 मजदूर
हुकुमचंद मिल जब बंद हुई उस वक्त मिल में 5895 मजदूर काम कर रहे थे। दुनिया के सबसे लंबे समय तक चले मजदूरों के इस संघर्ष में 2200 अपने पैसों की चाह लिए ही काल-कवलित हो गए, जबकि 60 से अधिक मजदूर आर्थिक तंगी के चलते खुदकुशी करने के लिए मजबूर हो गए। इतना ही नहीं, 200 से अधिक मजदूर अभी भी पैयरलिसेस( लकवा) के शिकार हो चुके हैं। अब जबकि उन्हें उनके खून-प सीन और हक का पैसा मिलने जा रहा है तो मजदूरों और उनके परिजनों के चेहरों पर खुशी की लहर देखी जा रही है।
कमलनाथ सरकार के दौरान लैंड यूज बदलने पर खुला रास्ता
यहां पर महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चूंकि पहले हुकुमचंद मिल की जमीन औद्योगिक थी इसलिए कोई इसका खरीददार ही नहीं मिल रहा था, किन्तु कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले इस मिल का लैंड यूज परिवर्तित कर इसे आवासीय घोषित किया, जिसके चलते मजदूरों की राह आसान हो गई और आज उन्हें उनके हक का पैसा मिलने जा रहा है।
पहला आंदोलन जिसमें सभी राजनीतिक दल साथ आए
यह पहला ऐसा आंदोलन रहा, जिसमें किसी एक राजनीतिक दल की भूमिका नहीं रही, बल्कि सभी मजदूरों के साथ खड़े नजर आए। दुनिया के इस सबसे लंबे समय तक चले संघर्ष में मजदूर मरते गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार उन्हें इस संघर्ष में विजय मिली। यहां पर यह भी प्रासंगिक है कि मजदूरों के संघर्ष के इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो यह पहला ऐसा मामला है, जहां वकीलों को ही 6 करोड़ 47 लाख रुपए का बतौ र फीस भुगतान किया गया।
प्रधानमंत्री करेंगे वर्च्यअली चर्चा
मजदूरों के इस संघर्ष की दास्तां को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आज मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश एवं किशनलाल बोकारे से चर्चा करेंगे।
हर रविवार मिल गेट पर जमा होते थे मजदूर
अपने खून-पसीने की कमाई पाने के लिए मजदूरों ने हक की लड़ाई शुरू की और इसके लिए हुकुमचंद मिल मजदूर संघर्ष समिति का गठन किया गया। मिल मजदूर नरेंद्र श्रीवंश, हरनामसिंह धारीवाल और किशनलाल बोकारे इस संघर्ष के सूत्रधार बने, जो अंत तक मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ते रहे। लगभग 32 साल लंबे चले दुनिया के इस सबसे बड़े मजदूर आंदोलन के लिए हर रविवार मजदूर मिल गेट पर जमा होते रहेे और आगे की रणनीति बनाते रहे। अंतत: उनका संघर्ष रंग लाया और अब उन्हें उनके हक का पैसा मिलने जा रहा है।