राजा से महाराजा ने किया अपना हिसाब चुकता
चुन-चुनकर निपटाते रहे दिग्गी समर्थकों को, राधौगढ़ का किला भी ढहा
ग्वालियर (ब्यूरो)। मध्यप्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले दो दिग्गज नेताओं के बीच चली आ रही राजनीतिक खींचतान के चलते इस बार भाजपा में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजयसिंह पर भारी पड़े। उन्होंने अपना कांग्रेस से मुक्त होने के बाद हिसाब चुकता कर लिया। पिछली बार सिंधिया से चल रहे शीत युद्ध में दिग्विजयसिंह भारी पड़े थे। सिंधिया ने इस बार ग्वालियर अंचल में दिग्विजयसिंह के रिश्तेदारो और कट्टर समर्थकों को चुन-चुन कर निपटाया। इसमें कई बार हार-जीत के बीच संघर्ष के बाद जयवर्द्धन अंत में बेहद कम मतों से जीतकर अपने आपको बचा पाए, जबकि उनके भाई लक्ष्मणसिंह को बुरी हार देखना पड़ी।
ग्वालियर अंचल के विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार कांग्रेस पुरी तरह दिग्विजयसिंह पर आश्रित थी। यहां के लगभग सभी उम्मीदवार दिग्विजयसिंह के कट्टर समर्थक ही थे। पिछले विधानसभा में राजपूत समाज के 14 विधायक थे। इस बार इसमें से 8 हार गए। 6 बचे जिसमें 2 कांग्रेस के है। जहां भाजपा ने इस बार ग्वालियर अंचल में सिंधिया के साथ पुरी ताकत से चुनाव लड़ा, वहीं कांग्रेस खेमों में बिखरती गई और इसी का लाभ उठाकर दिग्विजयसिंह से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना पुराना हिसाब किताब पुरा कर लिया। राघोगढ का किला भी ढह गया तो वहीं दिग्विजयसिंह के कई समर्थक भी बुरी तरह हार गए, जिसमें चांचौडा से लक्ष्मणसिंह तो खिलचीपुर से प्रियवृतसिंह इसके अलावा लाहार से 6 चुनाव जीते गोविंदसिंह भी इस बार सिंधिया के निशाने पर रहे। दिग्विजयसिंह के सबसे दमदार कट्टर समर्थक कपिध्वजसिंह सपा से कांग्रेस में आकर बुरी तरह हारे।
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